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जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज' [पांचवां खण्ड संलग्न रहना चाहिए जिससे कि उनको कामेच्छा शान्त रहे।
फिर भी ऐसे कितने ही जैन श्रमणों का उल्लेख मिलता है जो अपने ऊपर नियंत्रण न रख सकने के कारण चारित्र से भ्रष्ट हो गये। अरिष्टनेमि के भाई रथनेमि का उल्लेख ऊपर आ चुका है। साध्वी राजीमती को निरावरण देखकर उनका मन चलायमान हो गया था। इसी प्रकार जब सनत्कुमार चक्रवर्ती अपनी पटरानी सुनंदा को साथ लेकर संभूत मुनि की वन्दना करने गया तो मुनि ने रानी के अलकों के स्पर्श-सुख का सातिशय अनुभव करते हुए अगले भव में भोगों का उपभोग करने के लिए चक्रवर्ती का जन्म धारण करने का निदान किया। मुनि आर्द्रक के सम्बन्ध में उल्लेख है कि उन्होंने श्रमणत्व को त्याग कर किसी सार्थवाह की कन्या से विवाह कर लिया। उसके बाद दो पुत्र हो जाने के पश्चात् आर्द्रक ने अपनी पत्नी से पुनः साधु जीवन व्यतीत करने की इच्छा व्यक्त की। इस समय वह कात रही थी। उसके बच्चे ने प्रश्न किया-"मां, क्या कर रही हो ?" मां ने उत्तर दिया"तुम्हारे पिता जी साधु होना चाहते हैं, इसलिए अपने परिवार का पालन करने के लिए मैंने कातना शुरू किया है।" यह सुनकर बच्चे ने अपने पिता को बारह बार सूत के धागे से लपेट दिया, जिसका मतलब था कि आद्रक को १२ वर्ष तक गृहवास में रहना चाहिए।' मुनि आषाढभूति का उल्लेख पहले किया जा चुका है। अपने आचार्य के बहुत समझाने-बुझाने के बावजूद उन्होंने श्रमणत्व का त्यागकर राजगृह के सुप्रसिद्ध नट विश्वकर्मा को दो पुत्रियों से विवाह कर लिया । परिवार के सब लोग मिलकर नाटक खेलने लगे। एक बार आषाढ़भूति की दोनों पत्नियां आसव पीकर बेखबर सोयी हुई थीं। उन्हें इस
१. ३. २४५-५४ पृ० ५२ आदि । यहाँ इस प्रकार से वेद की शान्ति न होने पर अन्य उपायों का अवलंबन लेने की विधि का वर्णन किया गया है । तथा देखिये वही, ३.२६७-८; ५.७३-४, पृ० १७; ६.२१, पृ० ४; वही, ३.१९२-६५ । तथा निशीथसूत्र ६.१-७७; तथा भाष्य २१९६-२२८६ तथा चूर्णी; निशीथसूत्र ७.१-९१; भाष्य २२८८-२३४० तथा चूर्णी । .. २. उत्तराध्ययनटीका १३, पृ० १८६-अ आदि ।
३. सूत्रकृतांगटीका २, ६, पृ० ३८८ । तुलना कीजिए बंधनागार जातक (२०१), १, १० ३०७; तथा धम्मपदअट्ठकथा १, पृ० ३०६ आदि; ४, पृ० ५४ आदि ।