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________________ पांचवां खण्ड ] पहला अध्याय : श्रमण सम्प्रदाय ४०५ को प्राप्ति के वास्ते विषयभोग के लिए निमंत्रित करतो'। कोई स्त्री केवल दरिद्र, दुर्भग और कठिन शरीर वाले लोगों के ही योग्य ऐसे कष्टप्रद संयम को त्यागकर उन्हें अपने साथ भोग भोगने के लिए आमंत्रित करतो। सूत्रकृतांग में ऐसी स्थिति का अत्यन्त स्वाभाविक चित्रण किया गया है। कोई साधु कामवासना के कारण किसी स्त्री के वश में हो गया; फिर तो धीरे-धीरे वह उसे धमकाने लगो और अपने पैर से उसकी ताड़ना करने लगो | कभी व्यंग्यपूर्ण वचनों से वह उससे कहती-"ऐ प्रिय, यदि तुम मुझ जैसो सुकेशो स्त्री के साथ नहीं रहोगे तो मैं इन केशों का लोच करवा डालूँगी। किसी भी हालत में मुझे अकेलो छोड़कर तुम मत रहना ।” तत्पश्चात् वह साधु को लकड़ियां, आलता, भोजन, पान, वस्त्र, आभूषण, सुगंधित द्रव्य, अंजन, शलाका, चूर्ण (पाउडर), तेल, गुटिका, तिलककरणी, छत्र, पंखा, कंघा, शोशा, दातौन, पेशाब का बर्तन, (मोचमेह ), ओखलो ओर चंदालक ( ताम्रमय पात्र) आदि घर-गृहस्थो का सामान लाने का आदेश देती । यदि कहीं वह गर्भवती हो गयी तो एक दास को भांति उसे उसके दोहद पूर्ण करने को कहतो । यदि वह सन्तान प्रसव करती तो संतान को गोद में उठाकर चलने के लिए कहती, और रात्रि के समय दोनों हो एक दाई की भांति उसे थपक-थपक कर सुलाते । और ये काम करते हुए यद्यपि दोनों को शर्म लगती, फिर भो एक धोबो को भांति वे उसके वस्त्र आदि धोते । __व्यवहारभाष्य में इस सम्बन्ध में किसी श्रेष्ठोपुत्र को वधू की एक शिक्षाप्रद कहानी दो गयी है। किसी सेठ का पुत्र अपनी स्त्री को अपने माता-पिता के पास छोड़कर धनाजन करने के लिए परदेश चला गया । इस बीच में स्त्री को कामवासना जागृत हुई। उसने दासी से अपनी इच्छा व्यक्त की । दासी ने गुप्त रूप से सारी बात सेठ और सेठानी से कह दो । सेठ को बड़ी चिंता हुई। उसने झूठमूठ सेठानी से लड़ाई कर ली । अब घर का सारा भार उसकी पुत्रवधू पर आ पड़ा। एक दिन दासी ने बहू को पहली बात याद दिलायो । बहू ने उत्तर दिया-"दासो, अब तो मरने तक की फुर्सत नहीं है।" इस दृष्टांत द्वारा साधुओं को उपदेश दिया गया है कि उन्हें सूत्र-स्वाध्याय आदि में १. आचारांग २, २.१.२९४, पृ० ३३२ आदि । २. उत्तराध्ययनटीका १, पृ०-२०-अ । ३. सूत्रकृतांग ४.२ । ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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