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पांचवां खण्ड ]
पहला अध्याय : श्रमण सम्प्रदाय
४०.१
और भी अनेक प्रकार के राज्योपद्रव हुआ करते थे । किसी राजा के तीनों राजकुमारों ने दोक्षा ग्रहण कर लो, किन्तु संयोगवश कुछ समय बाद राजा की मृत्यु हो गयो । मन्त्रियों ने राजा के लक्षणों से युक्त किसी कुमार का अन्वेषण करना आरम्भ किया । पता लगा कि दीक्षित राजकुमार विहार करते हुए नगर में आये हैं और उद्यान में ठहरे हुए हैं। यह सुनकर अमात्य छत्र, चमर और खड्ग उद्यान में पहुँचे | पहले राजकुमार ने संयम-पालन में असमर्थता प्रकट की, दूसरे ने उपसर्ग सहकर भी संयम का पालन किया, और तीसरे को आचार्य ने संयतियों के उपाश्रय में छिपा दिया । '
कभी राजपुत्र और पुरोहित दोनों ही प्रद्वेष करनेवाले होते थे । कोई साधु उज्जैनी में विहार कर रहा था । भिक्षा के लिए उसने राज भवन में प्रवेश किया । कुमारों ने उसे नृत्य करने के लिए कहा। लेकिन साधु ने उत्तर दिया कि यदि तुम लोग बाजा बजाओ तो मैं नाच सकता हूँ । कुमारों ने बजाना शुरू किया, लेकिन वे ठीक प्रकार से नहीं बजा सके । साधु और कुमारों में झगड़ा हो गया । मारपीट के बाद साधु अपने गुरु के समीप पहुँचा । पीछे-पोछे राजा अपने दल-बल सहित उपाश्रय में आया । साधु ने राजा को फटकारते हुए कहा कि तुम कैसे राजा हो जो तुमसे अपने पुत्र भो वश में नहीं रक्खे जा सकते ।
उपाश्रयजन्य संकट
निर्ग्रन्थ श्रमणों को ठहरने को बहुत बड़ी समस्या थी । अनेक जनपदों में रहने के लिए उन्हें स्थान का मिलना कठिन था, और ऐसी दशा में उन्हें वृक्ष, चैत्य या शून्यगृह की शरण लेनी पड़ती थी । लेकिन ग्राम के बाहर देवकुल अथवा शून्यघर में ठहरने से स्त्री अथवा नपुंसक द्वारा उपसर्ग किये जाने की आशंका रहती थी। कभी वहां सेना पड़ाव डालती थो, अथवा व्याघ्र आदि जंगली जानवरों का आना-जाना लगा रहता था । ऐसे स्थानों पर रात के समय चोरों का भय रहता, सर्प, मकोड़े आदि निकलते, मच्छरों का उपद्रव होता और कुत्ते पात्र उठाकर ले जाते । कभी वहाँ घूम-फिर कर कोतवाल आकर
१. देखिए ऊपर पृ० ४७-४८; तथा निशीथभाष्य ४. १७४०-४४ ।
२. उत्तराध्ययनटीका २, पृ० २५-अ ।
३. देखिये बृहत्कल्पभाष्य १.२४९३ - ९९ ।
४. निशीथभाष्य ५.१९१४ की चूर्णी; बृहत्कल्पभाष्य १.२३३०-३३ । २६ जै० भा०
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