________________
४०० जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज [चवां खण्ड यदि राजा ने जीवन से वंचित करने का निश्चय ही कर लिया हो तो उसे विद्या, निमित्त अथवा चूर्ण आदि के प्रयोग से वश में करे। यदि यह संभव न हो तो जंगल के गहन वृक्षों अथवा पद्मों के तालाब आदि में छिपकर अपनी रक्षा करे।
कभी राजा के अभिषेक-समारोह पर समस्त प्रजा और सभी पाखण्डी तो उपस्थित होते, केवल श्वेतभिक्षु न आते, तो ऐसी दशा में राजा उन्हें देश से निष्कासित कर देता । नमुई के राजपद पर अभिषिक्त होने पर, श्वेत भिक्षुओं को छोड़कर, सारी प्रजा उसे बधाई देने आयो थो; यह बात राजा को अच्छो न लगी। उसने श्वेत भिक्षुओं को बुलाकर कहा–'जिसे राजपद प्राप्त हो, वह क्षत्रिय हो या ब्राह्मण, उसे सभो साधुओं को उपस्थित होकर बधाई देनी चाहिए, कारण कि राजा तपोवन को रक्षा करता है । तुम लोग मर्यादा का पालन नहीं करते, इसलिए राज्य को छोड़कर फौरन चले जाओ।' यह देखकर एक साधु गंगामन्दिर पवत पर विष्णुकुमार मुनि के पास पहुँचा । विष्णुकुमार आकाशविद्या की सहायता से फौरन ही गजपुर के लिए रवाना हो गये | वे साधुओं को साथ लेकर नमुई के दर्शनार्थ गये। लेकिन नमुई ने कहा-'जो कुछ मुझं कहना था, मैने कह दिया है, बार-बार कहने से कोई लाभ नहीं ।' यह देखकर विष्णुकुमार ने राजा से तीन पैर जमीन को याचना को । राजा ने तीन पैर रखने की जगह दे दो, लेकिन कहा कि यदि कहीं चौथा पैर रखा तो सिर काट लिया जायगा । यह सुनकर विष्णुकुमार को भी क्रोध आ गया । कोपाग्नि से उनका शरीर बढ़ता चला गया। यह देख श्रमण संघ ने उन्हें किसी प्रकार शान्त किया । इस समय से विष्णुकुमार त्रिविक्रम के नाम से विख्यात हुए।
१. वही. १.३१२०-३६ । २. निशीथचूर्णी ९.२५७३ ।
३. व्यवहारभाष्य वृत्ति १.९०-९१, पृ० ७६-७७ में उल्लेख है कि जैसे चाणक्य ने नन्द राजाओं का और नलदाम जुलाहे ने मकोड़ों का उन्मूलन किया, वैसे ही प्रवचन से द्वेष करने वाले राजा का समूल नाश करे । ऐसे लोग केवल शुद्ध ही नहीं कहलाते, बल्कि शीघ्र ही उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है (अचिरान्मोक्षगमनं) । यहाँ प्रवचन के रक्षक के रूप में विष्णुकुमार मुनि का उदाहरण दिया है । तथा देखिए वही ७.५४५-४७, पृ. ६४-अ-६५; निशीथचूर्णी पीठिका ४८७ की चूर्णी, पृ० १६२-६३ ।
४. उत्तराध्ययनटीका १८, पृ० २४९ ।