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________________ ३९८ जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज [ पांचवां खण्ड बोधिक चोरों का उपद्रव हो और कोई भी उपाय न हो सके तो देश छोड़कर जाने का विधान है । साधुओं के कंबलरत्न ( कीमतो कंबल ) के ऊपर भी चोरों की नजर रहती थी, और अनेक बार वे छुरा दिखाकर, खंडित किये हुए कंबल को उनसे सिलवा कर ले लेते थे । २ चोरों द्वारा सर्वस्व हरण कर लिए जाने पर, भयंकर शीत के समय, उन्हें अपने हाथ-पांव को आग में तापना पड़ता था । २ वैराज्य - विरुद्ध राज्य प्रकरण वैराज्य अथवा विरुद्ध राज्य में गमनागमन से जैन श्रमणों को दारुण कष्टों का सामना करना पड़ता था । वैराज्य चार प्रकार का बताया गया है - (क) राजा की मृत्यु हो जाने पर यदि दूसरे राजा और युवराज का अभिषेक न हुआ हो ( अणराय ), ( ख पहले राजा द्वारा नियुक्त युवराज से अधिष्ठित राज्य; अभी तक दूसरा युवराज अभिषिक्त न किया गया हो ( जुवराय ), (ग) दूसरे राजा की सेना ने राज्य को घेर लिया हो (वेरज्जय = वैराज्य), (घ) एक ही गोत्र के दो व्यक्तियों में राज्यप्राप्ति के लिए कलह हो रहो हो (वेरज्ज = द्वैराज्य ) । यदि किसी जनपद में व्यापारियों का गमनागमन रहता तो साधु को भी उस जनपद में विहार कर सकने को अनुज्ञा थो, अन्यथा विरुद्ध राज्य होने से वहां गमनागमन का निषेध किया गया है । " ऐसी दशा में कंधे पर लाठी रखकर चलनेवाले मुसाफिरों (अत्ताण), चोरों, शिकारियों (मेय), राजा की आज्ञा के बिना सपरिवार भागकर जानेवाले भटों, राहगीरों, और गुप्तचरों के साथ गमन करने की आज्ञा है ।" लेकिन कभी नगररक्षक ( गोम्मिय = गौल्मिक ), चोर और गुप्तचरों आदि के भय से मार्गों को रोककर रखते थे, ऐसी हालत में १. वही १.३१३७ । २ . वही ३.३६०३ - ४ । ३. निशीथचूर्णापीठिका २३४ । ४. बृहत्कल्पभाष्य १.२७६४-६५ । ५. वही १.२७६६ । ६. एकलविहारी श्रावस्ती के राजकुमार भद्र को वैराज्य में गुप्तचर समझ कर पकड़ लिया गया था । उसे अनार्यों से बँधवाकर उसके शरीर में तीक्ष्ण दर्भों का प्रवेश कर, उसे असह्य वेदना पहुँचाई गयी, उत्तराध्ययनटीका २, पृ० ४७ ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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