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________________ ३८८ जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज [पांचवां खण्ड पट - शाटक में ग्रहण किया । फिर उनका गन्धोदक से प्रक्षालन कर, गोशीर्ष चन्दन के छींटों से चर्चित कर, श्वेत वस्त्र में बांधा और फिर रत्नों की पिटारी में बन्द कर अपने सिरहाने ( उस्सीसामू ले ) रख लिया । तत्पश्चात् जल के श्वेत-पीत कलशों से मेघकुमार को स्नान कराया गया, गोशीर्ष चन्दन का शरीर पर लेप किया गया, नाक की व से उड़ जानेवाले हंस-लक्षण पटशाटक पहनाये गये, तथा चतुर्विध माल्य और आभूषणों से उसे अलंकृत किया गया। इसके बाद शिविका (पालकी) तैयार की गयी । मेघकुमार को पूर्वाभिमुख सिंहासन पर बैठाया गया । उसकी माता स्नान आदि से अलंकृत हो अपने पुत्र के दाहिनी ओर भद्रासन पर बैठी । उसको बायीं ओर रजोहरण और पात्र लेकर अम्बाधातृ बैठी । दोनों ओर दो सुन्दर तरुणियाँ चमर डुलाने लगीं; एक सामने की ओर तालवृन्त लेकर और दूसरी भृंगार ( झारी) लेकर खड़ी हो गयी । प्रजाजन की ओर से अभिनंदन के शब्द सुनायी देने लगे और गुरुजनों की ओर से आशीर्वाद की बौछार होने लगी । मेघकुमार गुणशिल चैत्य में पहुँच कर शिविका से उतरे और उन्हें शिष्य - भिक्षा के रूप में भगवान्. महावीर के सामने प्रस्तुत किया गया । मेघकुमार ने अपने वस्त्र और आभूषण उतार डाले, तथा पञ्चमुष्टि से अपने केशों का लोच करके भगवान को प्रदक्षिणा को और हाथ जोड़कर उनको पयुपासना में लीन हो गये । महावीर ने मेघकुमार को अपने शिष्य के रूप में स्वकार किया । नमि राजर्षि और शक्र का संवाद मि राजर्षि और शक्र का एक सुन्दर संवाद उत्तराध्ययनसूत्र में आता है जिससे पता लगता है कि राजा लोग भी बिना किसी वस्तु की परवा किये, निर्ममतापूर्वक संसार का त्याग करके वन की शरण लेते थे । इस संवाद का कुछ अंश देखिए शक्र – हे भगवन्, यह अग्नि और यह वायु आपके भवन को जला रही है । अपने अन्तःपुर की ओर आप क्यों ध्यान नहीं देते ? नमि - हे इन्द्र, हम तो बहुत सुख से हैं, क्योंकि हमारा किसी १. १, पृ० २४-३४ । जमालि के निष्क्रमण के लिए देखिए व्याख्या - प्रज्ञप्ति ९. ६; तथा देखिए आवश्यकचूर्णी पृ० २६६ - ७; उत्तराध्ययनटीका १८, पृ० २५७-अ आदि । बौद्धमतानुयायी राष्ट्रपाल की प्रव्रज्या के लिये देखिये मज्जिम निकाय, रट्ठपालसुतन्त ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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