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________________ पांचवां खण्ड ] पहला अध्याय : श्रमण सम्प्रदाय ३८७ तत्पश्चात् चतुरंगिणो सेना के साथ विजय हस्तिरत्न पर आरूढ़ हो, वे थावच्चापुत्र के घर आये और उसे बहुत समझाया-बुझाया। जब किसी हालत में वह अपने इरादे से न डिगा तो कृष्ण ने द्वारका में घोषणा करायो कि जो कोई राजा, युवराज, रानो, राजकुमार, ईश्वर, तलवर, कौटुम्बिक, माडंबिक, इभ्य, श्रेष्ठो, सेनापति और सार्थवाह श्रमण-दीक्षा ग्रहण करेगा, उसके कुटुम्ब-परिवार की देखभाल राज्य को ओर से की जायगी। यह सुनकर कितने हो स्त्री-पुरुष अपनी-अपनी पालकियों में सवार होकर दीक्षा ग्रहण करने के लिए उपस्थित हुए। ___ ज्ञातृधर्मकथा में मेघकुमार के निष्क्रमण-सत्कार का विस्तार से वर्णन मिलता है। महावीर भगवान् का उपदेश श्रवण करने के पश्चात् मेघकुमार के हृदय में संसार से वराग्य हो आया। अपने माता-पिता को अनुज्ञा प्राप्त करने के वास्ते वह अपने भवन में आया और मातापिता के चरणों में गिरकर कहने लगा-'हे माता-पिता, मुझे महावीर का धर्म अत्यन्त रुचिकर हुआ है, अतएव आपको अनुज्ञापूर्वक मैं श्रमण-धर्म में प्रजित होना चाहता हूँ।" यह सुनकर मेघकुमार की माता मूच्छित होकर धरणोतल पर गिर पड़ी। फिर कुछ समय बाद होश में आने पर विलाप करती हुई बोली-"मेघ, तुम मेरे इकलौते पुत्र हो, उदुम्बर के पुष्प की भाँति दुलेभ हो, मैं क्षणभर के लिए भी तुम्हारा वियोग सहन नहीं कर सकती, अतएव हम लोगों की मृत्यु के पश्चात् ही, परिणत वय होने पर, तुम दीक्षा धारण करना।" लेकिन मेघकुमार ने उत्तर दिया-"यह जीवन क्षणभंगुर है, न जाने पहले कौन काल को चपेट में आ जाये, इसलिए आप मुझे अभी दीक्षा ग्रहण करने की अनुमति प्रदान करें।” बहुत ऊहापोह होने के पश्चात् , दूकान (कुत्तियावण) से रजोहरण और पात्र (पडिग्गह) मॅगवाये गये, तथा चार अंगुल छोड़कर निष्क्रमण के योग्य अग्र केश काटने के लिए नाई को बुलाया। सुरभि गन्धोदक से हाथ और पैरों का प्रक्षालन कर, चार तहवाले शुद्ध वस्त्र से अपना मुँह ढंककर नाई ने मेघकुमार के केश काटे। इन केशों को मेघकुमार को माता ने हंसचिह्न वाले ___ १. ज्ञातृधर्मकथा ५, पृ० ७०-७१ । पद्मावती के महानिष्क्रमण-अभिषेक के लिये देखिये अन्तःकृद्दशा, पृ० २७ आदि । २. राजीमती जब अपनी माता से दीक्षा ग्रहण करने का अनुमति प्राप्त करने गई तो उसकी माता का शरीर काँपने लगा, उसके कंकण टूट गये और वह पृथ्वी पर गिर पड़ी। उत्तराध्ययन २२, पृ० २७९ अ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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