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पांचवां खण्ड] पहला अध्याय : श्रमण सम्प्रदाय के कारण कालधर्म को प्रान हो गये हों, केवल एक बालक ही बचा हो, (ग) किसो सम्यग्दृष्टि के पास कोई अनाथ बालक हो, (घ) किसी शय्यातर के पास कोई अनाथ बालक हो, (ङ) किसी कामातुर द्वारा किसी आर्या को भ्रष्ट कर देने पर बालक पैदा हुआ हो, (च) यदि किसो मंत्री द्वारा कुल, गण और संघ के लाभ होने को सम्भावना हो। इन्हीं परिस्थितियों में महावीर द्वारा अतिमुक्तक को, चतुर्दश पूर्वधारी शय्यंभव द्वारा मणग को और सिंहगिरि द्वारा वज्रस्वामी को प्रव्रजित किया गया था।
वृद्ध-प्रव्रज्या बालक की भांति वृद्ध को भी प्रव्रज्या देने का निषेध है। फिर भी महावीर द्वारा अपने पूर्व पिता सोमिल ब्राह्मण को, जम्बू द्वारा अपने पिता ऋषभदत्त को, और नवपूर्वधारी आर्यरक्षित द्वारा अपने पिता सोमदेव को जो प्रव्रज्या देने का उल्लेख है; उसे अपवाद के हो अन्तर्गत समझना चाहिए ।
गर्भावस्था में प्रव्रज्या यदि संयतियाँ किसी कारण से गर्भवती (डिंडिमबंध ) हो जायें तो उनकी बहुत सम्हाल रखनी पड़ती थी, यह बात पहले कही जा चुकी है। चम्पा के राजा दधिवाहन को रानी पद्मावती ने गर्भावस्था में हो प्रव्रज्या ग्रहण कर ली थी। लेकिन जब संघ की प्रवर्तिनी को इसका पता लगा तो पद्मावती ने सब बातें बता दों। पद्मावती को छिपाकर रक्खा गया। बाद में प्रसूति के समय नाममुद्रा और कम्बलरत्न के साथ बालक को एक इमशान में रख दिया गया। अन्य संयतियों के पूछने पर पद्मावती ने कह दिया कि मरा हुआ बालक पैदा हुआ था । आगे चलकर यही बालक राजा करकंडु के नाम से प्रसिद्ध
हुआ।
प्रव्रज्या के लिये माता-पिता की अनुज्ञा प्रव्रज्या, केशलोच और उपदेश आदि के लिए द्रव्य को अपेक्षा शालि अथवा ईख के खेत अथवा चैत्य वृक्ष को, और क्षेत्र की अपेक्षा
१. निशीथभाष्य ११.३५३७-३९। ---- २. वही ११.३५३६ । ३. वही ११.३५३६ । ।..
४. उत्तराध्ययनटीका ९, पृ० १३३ आदि । , २५ जै०भा०