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________________ पांचवां खण्ड ] पहला अध्याय : श्रमण सम्प्रदाय ३८३ और भी कई प्रकार की प्रव्रज्याएँ बतायी गयी हैं । तुयावइत्ता प्रव्रज्या में व्यथा पहुँचाकर ( तोदयित्वा ), पुयावइत्ता में अन्यत्र ले जाकर ( प्लावयित्वा ) तथा बुयावइत्ता प्रव्रज्या में संभाषणपूर्वक ( संभाष्य ) दीक्षा दी जाती है ।" नटखादिता, भटखादिता, सिंहखादिता और शृगालखादिता नाम की प्रव्रज्याओं का भी उल्लेख है ।" अनेक ऐसे उदाहरण मिलते हैं कि जब थोड़ा-सा भी उत्तेजन मिलने पर लोग भावुकतावश दोक्षा ग्रहण कर लेते थे । उज्जैनी कं राजा देविलासत की रानी ने अपने पति के सिर में एक सफेद बाल देखकर कहा कि महाराज, धर्मदूत आ गया है । तत्पश्चात् बाल को तोड़कर उसने अपनी उंगली में लपेट लिया और क्षौमयुगल के साथ एक सोने की थाली में रखकर नगर-भर में घुमाया। राजा ने संसार छोड़ने का निश्चय कर अपने पुत्र का राज्याभिषेक किया और घोषणा करायी कि हमारे पितामह बालों के सफेद होने के पूर्व ही दीक्षा ग्रहण कर लेते थे । फिर राजा ने अपनी रानी के साथ श्रमण-दीक्षा स्वीकार की । इसी प्रकार भरत चक्रवर्ती ने जब अपनी मुद्रिका - शून्य उँगली की ओर दृष्टिपात किया और वह उन्हें अच्छी न लगी, तो उन्हें संसार से वैराग्य हो आया | कांपिल्यपुर के राजा दुर्मुख ने बड़ी धूमधाम से इन्द्र - महोत्सव मनाया था। सात दिन के पश्चात्, इन्द्रध्वज की पूजा समाप्त होने पर, जब ध्वज को गिरा दिया गया तो उसमें से दुर्गन्ध आने लगी । यह देखकर दुर्मुख को वैराग्य हो आया और उसने दीक्षा ले ली ।" अरिष्टनेमि के सम्बन्ध में कहा जा चुका to बाड़े में बंधे हुए पशुओं की चीत्कार सुनकर वे बारात के साथ लौट आये और उन्होंने प्रव्रज्या धारण कर ली। राजीमती ने भी उनका अनुकरण किया । १. स्थानांग ३.१५७, पृ० १२२-अ, पृ० २६२ । २. वही ४.३५५, पृ० २६१-अ । ३. आवश्यकचूर्णी २, पृ० २०२ आदि । तुलना कीजिए स्थविरावलिचरित १.९४ आदि; मखादेवजातक ( ६ ), १, पृ० १७९; चुल्लसुतसोमजातक ( ५२५ ), ५, पृ० २६०; निमिजातक ( ५४१ ), ६, पृ० १४७ | ४. उत्तराध्ययनटीका १८, २३२-अ । ५. वही ९, पृ० १३६ |
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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