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३८० जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज [पांचवां खण्ड प्रायः सामान्य जनों द्वारा, पथिकों और यात्रियों के लिए नगर अथवा ग्राम के पास बनाये हुए चैत्यों अथवा उद्यानों में ठहरा करते । सामान्य जन उन्हें श्रद्धा की दृष्टि से देखते, उद्यानों में उनके दर्शनों, के लिए जाते, उनसे जिज्ञासा करते, उनके लिए अन्न-पान का प्रबन्ध करते, तथा उन्हें रहने के लिए स्थान ( वसति ), आसन ( पोठ ., काष्ठपट्ट : फलक ), शय्या और संस्तारक आदि आवश्यक वस्तुएं प्रदान करते ।
भगवान् महावीर का चंपा में आगमन भगवान् महावीर ग्रामानुग्राम विहार करते हुए चम्पा में आकर जब पूर्णभद्र नामक चैत्य में उतरे और इस बात का पता राजा कूणिक (अजातशत्रु) के वातोनिवेदक को चला तो वह फौरन हो, प्रसन्नचित्त हो, स्नान और बलिकर्म आदि से निवट, शुद्ध वस्त्र धारण कर घर से निकला, और हाथ जोड़कर राजा कूणिक को महावीर के आगमन का उसने शुभ सन्देश सुनाया । कूणिक इस समाचार से बहुत प्रसन्न हुआ । हर्षोत्कर्ष से उसके कंकण, मुकुट, कुंडल और हार आदि कम्पित होने लगे । वह शीघ्र हो सिंहासन से उठा, पादपीठ से उतरा, उसने पादुकाएँ उतारों, अपने खङ्ग, छत्र आदि पाँच राजचिह्नों को एक तरफ रक्खा, एक शाटिक उत्तरासंग धारण किया, हाथ जोड़कर सात-आठ पग तीर्थकर के अभिमुख गमन किया, फिर बायें घुटने को मोड़, दायें को पृथ्वी पर रक्खा, तीन बार मस्तक को जमीन पर टेक कर उठा और फिर हाथ जोड़कर नमस्कार करने लगा।
किसी तीर्थकर या महान पुरुष के नगरी में पधारने पर नगरी में कोलाहल मच जाता, तथा अनेक उग्र, उग्रपुत्र, भोग, भोगपुत्र, राजन्य, क्षत्रिय, ब्राह्मण, शूर, योद्धा, धर्मशास्त्रपाठी, मल्लकी, लिच्छवी, राजा, ईश्वर आदि तीर्थंकर के दर्शनों के लिए उतावले हो जाते । कुछ लोग पूजा के लिए, कुछ वन्दना के लिए, कुछ कौतूहल के लिए, कुछ प्रश्नों का समाधान करने के लिए, कुछ अश्रत को सुनने के लिए, और कुछ सुनी हुई बात का निश्चय करने के लिए उसके पास जाते | लोग वस्त्राभूषण पहन और चंदन का लेपकर अपने-अपने हाथी, घोड़ों, और पालकियों में सवार होकर, और कुछ पैदल चलकर चैत्य में उपस्थित होते, तथा प्रदक्षिणा कर, अभिवादनपूर्वक तीर्थकर के पास बैठ जाते ।
१. औपपातिकसूत्र ११-२, पृ० ४२-४७ ।