________________
३७४ जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज [च० खण्ड तो प्रवचन के उपहासास्पद होने की आशंका रहती है। यदि वहन करने वाले सब मिलाकर चार हों और उनमें एक वसति का स्वामी हो तो शेष तीन बीच-बीच में विश्राम करते हुए मृतक को ले जायें। आवश्यकता होने पर परलिंग धारण करके भो मृतक को परिष्ठापना करने का विधान है। यदि वहन करने वाला अकेला हो तो दूसरे गांव से असंवेगी साधु, सारूपिक, सिद्धपुत्र या श्रावकों को बुलवायें। यदि ये न मिले तो स्त्रियों की सहायता लें, नहीं तो मल्लगण, हस्तिपालगण
और कुम्भकारगण के पास जाना चाहिए । यदि यह भी संभव न हो तो फिर भोजिक (ग्राम-महत्तर ), संबर ( कचरा उठाने वाले ), नखशोधक और स्नान कराने वालों आदि की सहायता प्राप्त करनी चाहिए । यदि बिना कुछ मेहनत-मजदूरी के ये लोग काम करने से इन्कार करें तो उन्हें धर्मोपदेश दे, अथवा वस्त्र देकर सन्तुष्ट करना चाहिए।'
. अन्य मृतक कृत्य मृतकों को-बच्चों को भी-नोहरण क्रिया बड़े ठाट से होती और उनके अनेक मृत-कृत्य किये जाते थे । सुभद्रा ने जब सुना कि उसके पति का जहाज लवणसमुद्र में डूब गया है तो वह अपने सगे-सम्बन्धी और परिजनों के साथ रोने और विलाप करने लगी। तत्पश्चात् उसने अपने पति के लौकिक मृत-कृत्य किये । विजय चोर-सेनापति के कालधर्म को प्राप्त होने पर भी बड़े सजधज के साथ ( इडिढसक्कार ) उस की अन्त्येष्टि क्रिया सम्पन्न की गयी।" पितृपिंड का उल्लेख किया जा चुका है। मृतक का वार्षिक दिवस मनाया जाता और दिन ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता था।
१. मल्लगण-धर्म और सारस्वतगण-धर्म आदि को कुधर्म बताया गया है, निशीथचूर्णी ११.३३५४ ।
२. व्यवहारभाष्य ७.४४९-६२ । तथा देखिये आवश्यकनियुक्ति-दीपिका भाग २, ९५ आदि पृ० ७१-अ आदि, आवश्यकचूर्णी २, पृ० १०२-१०९, भगवतीआराधना १९७४-२००० । तथा देखिये बी० सी० लाहा, इण्डिया डिस्क्राइब्ड, पृ० १९३ ।
३. देखिये ज्ञातृधर्मकथा १४, पृ० १५१ । ४. विपाकसूत्र २, पृ० १७ । ५. वही ३, पृ० २४ ।
६. उत्तराध्ययनटीका १३, पृ० १६४-अ। तथा देखिए मतकभत्तजातक (१८), १, पृ० २१६; महाभारत १.१३४; रामायण ६.११४.१०१ आदि ।