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________________ छठा अध्याय : रीति-रिवाज श्रात्मघात के प्रकार आत्मघात के अनेक प्रकारों का उल्लेख जैनसूत्रों में मिलता है । जब राजा ने अपने मंत्री तेयलिपुत्त का यथोचित सन्मान नहीं किया तो उसने तालपुट' विष का भक्षण कर, अपने कंधे पर तलवार चलाकर, बृक्ष में बांधे हुए पाश में लटक कर, शिला को ग्रीवा में बांध अथाह जल में कूद कर तथा सूखे तृण की अग्नि में जलकर मरने की ठानी । मरण के अन्य प्रकारों में पहाड़ से गिरने, वृक्ष से गिरने, छिन्न पर्वत से झूल जाने ( गिरिपक्खंदोलय ), वृक्ष से झूल जाने, में कूद पड़ने, विष भक्षण करने, " शस्त्र का प्रहार करने, और वृक्ष को शाखा आदि से लटक जाने का उल्लेख किया गया है। इसके सिवाय, कोई उपसर्ग उपस्थित होने पर, दुर्भिक्ष पड़ने पर, बुढ़ापा आने पर और असाध्य रोग आदि से पीड़ित होने पर अन्न-पान का त्याग शरीर त्याग करने को सल्लेखना कहा है। कितने ही जैन साधुओं द्वारा इस व्रत को स्वीकार करके निर्वाण -प्राप्ति का उल्लेख है । जल च० खण्ड ] ३७५ १. जेणंतरेण ताला संपूडिज्जंति तेणंतरेण मारयतीति तालपुडं, दशवैकालिकचूर्णी ८, पृ० २.९२ । शतसहस्रवेधी विष का उल्लेख आवश्यकचूर्णी पृ० ५५४ में आता है । २. चाणक्य के सम्बन्ध में कहा है कि उसने जंगल में जाकर धूप जलायी, और उसके एक तरफ कंडे रखकर उसके ऊपर अंगारे रख दिये । कंडे जल उठे और चाणक्य अग्नि में भस्म हो गया. दशवैकालिकचूर्णी २, पृ० ८१-२ । ३. ज्ञातृधर्मकथा १४, पृ० १५६ । ४. कौशाम्बी के राजा उदयन के सम्बन्ध में उक्ति है कि वह अपनी रानी के साथ किसी पहाड़ी की चोटी से गिर पड़ा, प्रधान, क्रॉंनोलोजी आँव ऐंशियेंट, इंडिया, पृ० २४६; चुल्लपदुमजातक ( १९३), पृ० २८१ आदि । ५. देखिए स्थानांग ४.३४१; ६.५३३ : तथा बृहत्कल्पभाष्य ३.४२०८; पिंडनिर्युक्ति २७४; प्रज्ञापना १, ५३ पृ० १४४, जीवाभिगम १, पृ० ३६-अ; अर्थशास्त्र, २.१७.३५. १२–१३, पृ० २२१ । ६. निशीथसूत्र ११.९२, देखिए अन्तःकृद्दशा, पृ० ८ आदि ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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