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च० खण्ड ]
छठा अध्याय : रीति-रिवाज
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यदि साधु महामारी आदि किसी छूत की बीमारी ( छेवहओ ) से कालगत हुआ हो तो जिस संस्तारक द्वारा उसे ले गये हों, उसके टुकड़े करके उसका परिष्ठापन करना चाहिए । इसी प्रकार उसकी अन्य उपधि या और कोई वस्तु जो उसके शरीर से छू गयी हो उसका भी परित्यागकर देना चाहिए ।"
यदि साधु रात्रि के समय कालगत हुआ हो तो उपाश्रय के मालिक गृहस्थ को उठाकर उसका वहनकाष्ठ प्राप्त करने की आज्ञा लेनी चाहिए । यदि गृहस्थ न उठे तो वहनकाष्ठ से मृतक का कर्म करके उसे वापिस लाकर रख देना चाहिए ।
आनन्दपुर में संयत मुनियों को उत्तर दिशा में स्थापित करने का रिवाज था । किसी गांव में यदि सब जगह खेत हों तो राजपथ में अथवा दो गांवों के बीच की सीमा में शव का स्थापन करना चाहिए । यदि ऐसा स्थान न मिले तो मृतक को श्मशान में ले जाना चाहिए । यदि वहाँ श्मशान-पालक द्वार पर खड़ा होकर कर मांगे तो पहले तो उसे उपदेश देकर समझाये, अन्यथा मृतक के वस्त्र देकर शान्त करे । यदि वह नये वस्त्रों के लिए आग्रह करे तो मृतक को उसे सौंपकर गांव में से वस्त्रों को याचना कर उसे लाकर देना चाहिए । यदि फिर भी न माने तो राजकुल में उपस्थित होकर इस बात को कहना चाहिए। यदि राजा का उत्तर मिले कि श्मशान - पालक स्वतंत्र है, हम इसमें क्या कर सकते हैं तो फिर अस्थंडिल हरितकाय आदि के ऊपर धर्मास्तिकाय की कल्पना कर, मृतक के शरीर को स्थापित कर देना चाहिए | 3
साधु के मृत शरीर को वहन करके ले जाने का काम भी कम संकटों से भरा नहीं था । सर्वप्रथम साधुओं को शव को वहन करना चाहिये, उनके न होने पर गृहस्थ ले जायें, अथवा बैलगाड़ी द्वारा उसका प्रबन्ध किया जाये, नहीं तो मल्लों की सहायता ली जानी चाहिए | गृहस्थों को राजकुल में पहुँचकर सहायता के लिये निवेदन करना चाहिए। यदि चांडालों से मृतक को उठवाने की व्यवस्था की जाये
१. वही ४.५५५२ ।
२. वही ४.५५६०-६५ ।
३. व्यवहारभाष्य ७.४: २–४६, पृ० ७५-अ आदि ।
४. मनुस्मृति ( १०.५५ ) में अनाथ व्यक्तियों के शव को चांडालों द्वारा उठवाकर ले जाने का उल्लेख है ।