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३७० जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज [च० खण्ड गोशीर्ष चंदन का लेप किया गया। फिर शिविका द्वारा वहनकर उन्हें चिता पर रख दिया गया, और अग्नि द्वारा शरीर भस्म हो जाने पर उनकी अस्थियों पर चैत्य-स्तूपों का निर्माण किया। इस समय से लोग राख को इकट्ठी कर उसके छोटे-छोटे डूंगर (डोंगर ) बनाने लगे।' मृतक-पूजन और रोदन (रुण्णसद्द ) का उल्लेख मिलता है। अनाथ मृतक की हड्डियों को घड़े में रखकर गंगा में सिराया जाता था।
शव को पशु-पक्षियों के भक्षण के लिए जंगल आदि में भो रखकर छोड़ दिया जाता था। राजा का आदेश होने पर साधु के शव को गड़े (अगड), प्राकार के द्वार, दीपिका, बहती हुई नदी अथवा जलती हुई आग में रख दिया जाता था।* गृध्रस्पृष्ट नामक मरण में मनुष्य अपने-आपको पुरुष, हाथी, ऊँट अथवा गधों के मृत कलेवर के साथ डाल देता और फिर उसे गीध आदि नोंचकर खा जाते। अथवा लोग अपने पृष्ठ या उदर आदि पर अलते का लेपकर, अपने आपको गीधों से भक्षण कराते । अपराधियों को भी गीध और गीदड़ आदि से भक्षण कराने के लिए छोड़ दिया जाता था। .. मुर्दो को गाड़ देने का रिवाज भी था; यह विशेषकर म्लेच्छों में प्रचलित था । ये लोग मुर्दो को मृतक-गृह या मृतक-लयन
१. आवश्यकचूर्णी, पृ० २२२-२४ । तुलना कीजिए तित्तिरजातक ( ४३८ ), पृ० १३८ में वालुकाथूप का उल्लेख है । तथा देखिए परमत्थदीपनी नाम की अटकथा, पृ० ९७, रामायण ४.२५.१६ आदि;। दीघनिकाय २.३, पृ० ११०, १२६; बी. सी. लाहा. इंडिया डिस्क्राइब्ड, पृ० १९३ ।
२. आवश्यकभाष्य २६, २७, हरिभद्रटीका, पृ० १३३; आवश्यकचूर्णी, पृ० १५७, २२२ आदि ।
३. बृहत्कल्पभाष्यटीका ४.५२१५ । ४. महानिशीथ, पृ० २५ । तुलना कीजिए ललितविस्तर, पृ० २६५ । ५. बृहत्कल्पभाष्य ३.४८२४ ।
६. औपपातिकसूत्र ३८, पृ० १६२-६३; निशीथसूत्र ११.९२; निशीथभाष्य ११.३८०६ की चूर्णी । यह प्रथा तक्षशिला के आसपास मौजूद थी, इसका उल्लेख स्ट्रैबो ने किया है । पुसालकरभास, अध्याय २०, पृ० ४६९ ।
७. देखिये पीछे, पृ० ८९ ।