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________________ च० खण्ड] . छठा अध्याय : रीति-रिवाज ३६६ के साथ इनका भी पालन-पोषण करेंगे। इनमें से एक अण्डा तो मर गया, लेकिन दूसरे अण्डे में से मयूरपोत निकल आने पर, उसे मयूरपोषकों को पालने के लिए दे दिया। मयूरपोषकों ने उसे नाट्य आदि सिखाकर तैयार कर दिया। उसके बाद नगर के मयूरपोतों के साथ वह युद्ध करने लगा, और अपने मालिक को धन कमाकर देने लगा। अन्य खेल-तमाशे इसके अतिरिक्त, प्राचीन सूत्रों में अश्वयुद्ध, हस्तियुद्ध, उष्ट्रयुद्ध, गोणयुद्ध, महिषयुद्ध और शूकरयुद्धों का भी उल्लेख किया गया है। ऐसे कितने ही लोगों के नाम आते हैं जो खेल-तमाशे आदि दिखाकर प्रजा का मनोरञ्जन किया करते थे। उदाहरण के लिए, नट, नर्तक, जल्ल, मल्ल, मौष्टिक, विदूषक, कथावाचक, उछलने-कूदनेवाले, तैराक, ज्योतिषी, गायक, भाँड, बाँस पर खेल दिखाने वाले (लंख), चित्रपट दिखाकर भिक्षा मांगने वाले ( मंख), तुंब वीणा बजाने वाले, विट, मागध ( भाट) आदि विविध प्रकार से मन-बहलाव किया करते थे । लंख बाँस के ऊपर एक तिरछी लकड़ी रख कर, उसमें दो कील गाड़ लेते। इन कीलों में अपनी खड़ाऊं फंसा लेते और हाथ में ढाल-तलवार ले ऊपर उछलते और फिर से बांस में लगी हुई लकड़ी पर कूद जाते । राजा-रानी इन खेलों को देखने जाते थे।४ . अन्त्येष्टि क्रिया मृतक का दाह-कर्म करने के पश्चात् उसके ऊपर चैत्य और स्तूप बनाने का रिवाज था । शव को चंदन, अगुरु, तुरुक्क, घी और मधु डाल कर जलाया जाता, तथा मांस और रक्त के जल जाने पर, हड़ियों को इकट्ठाकर उनपर स्तूप बना दिये जाते। ऋषभदेव का निर्वाण होने पर नंदनवन से गोशीर्ष चंदन और क्षीरोदधि से क्षीरोदक लाया गया। इस जल से तीर्थंकर को स्नान कराने के पश्चात् उनके शरीर पर १. ज्ञातृधर्मकथा ३, पृ० ६१-२ । २. आचारांग २, ११. ३९२, पृ० ३७९ अ; निशीथसूत्र १२.२३ । तुलना कीजिए दीघनिकाय १, ब्रह्मजालसुत्त पृ०८; याज्ञवल्क्यस्मृति १७, पृ० २५५ । ३. राजप्रश्नीयसूत्र १। ४. आवश्यकचूर्णी, पृ० ४८५ । तुलना कीजिए धम्मपद-अट्ठकथा जिल्द ४, पृ० ५९ आदि। २४ जै०भा०
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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