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३६८ जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज [च० खण्ड दिया। इस पर राजा ने प्रसन्न होकर उसकी मरणपर्यन्त आजीविका बांध दी ।
मल्लों में कुछ मल्ल ऐसे भी होते थे जो एक हजार आदमियों के साथ युद्ध कर सकते थे; इन्हें सहस्रमल्ल कहा जाता था । ऐसे मल्लों को परीक्षा कर लेने के पश्चात् ही राजा उन्हें नियुक्त करता था । एक बार की बात है, अवन्तीपति प्रद्योत के दरबार में कोई सहस्रमल्ल आया । राजा ने उसकी परीक्षा के लिए, उसे कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि को महाकाल श्मशान में भेजा और कहा कि यदि वह बकरे का मांस भक्षण कर और सुरा का पान करके पिशाच से भयभीत न हो तो हो वह उसे रख सकता है। सहस्रमल्ल ने राजा के आदेश का पालन किया और वह राज-दरबार में रहने लगा। रथवीरपुर के सहस्रमल्ल शिवभूति को भी नियुक्त करने के पहले उसकी इसी प्रकार परीक्षा ली गयी थी।
कुक्कुटयुद्ध कुक्कुटयुद्ध द्वारा भी मनोरंजन किया जाता था। कौशांबी के सागरदत्त और बुद्धिल नामक दो श्रेष्ठोपुत्रों ने शत-सहस्र की होड़ लगाकर कुक्कुटयुद्ध कराया था। पहली बार सागरदत्त के कुक्कुट ने बुद्धिल के कुक्कुट को हरा दिया । लेकिन दूसरी बार पासा उलट गया, और सागरदत्त को एक लाख देने पड़े। लेकिन पता चला कि युद्ध के पहले बुद्धिल ने अपने कुक्कुट के पैरों में लोहे को बारीक की जड़ दो हैं । सागरदत्त ने चुपचाप इन कीलों को निकाल दिया, और उसका कुक्कुट जीत गया ।
___ मयूरपोत-युद्ध मयूरपोतों से भी युद्ध कराया जाता था। एक बार चम्पा के दो सार्थवाह उद्यान में कोड़ा के लिए गये हुए थे। उन्होंने देखा कि वनमयूरी ने दो अण्डे दिये हैं। उन्होंने सोचा अपनी कुक्कुटी के अण्डों
१. उत्तराध्ययनटीका ४, पृ० ७८-अ आदि। चाणूर और मुष्टिक के युद्ध के लिये देखिये घट जातक (४५४), ४, पृ० २८३; तथा हरिवंशपुराण १.५४.७६ ।
२. व्यवहारभाष्य १,३, पृ० ९२-अ-९३ । ३. उत्तराध्ययनटोका ४, पृ० ७४-अ । ४. वही १३, पृ० १९१ ।