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________________ च० खण्ड] छठा अध्याय : रीति-रिवान भोजन कर वमन कर देते हैं और विकाल में सोते रहते । अतएव ग्लान आदि अपवाद अवस्था में ही जैन साधुओं को संखडियों में सम्मिलित होने का विधान है । मांसप्रचुर संखडि में मांस को काटकाट कर सुखाया जाता है । __ मल्लयुद्ध मल्लयुद्ध, कुक्कुटयुद्ध, अश्वयुद्ध आदि कितने ही युद्धों का उल्लेख जैनसूत्रों में आता है जिससे पता लगता है कि लोग युद्धों के द्वारा भी अपना मनोरंजन किया करते थे । अड्डिय और पबड्डिय आदि के द्वारा मल्लयुद्ध किया जाता था । मल्लयुद्ध के लिए राजा लोग अपने-अपने मल्ल रखते थे। सिंहगिरि सोप्पारय (शूर्पारक =नाला सोपारा, जिला ठाणा ) का राजा था, जो विजयी मल्लों को बहुत-सा धन देकर प्रोत्साहित किया करता था। उज्जैनो का अट्टण नाम का मल्ल प्रतिवर्ष शूर्पारक पहुंचकर पताका जीत कर ले जाता था । सिंहगिरि को वह अच्छा न लगा । उसने एक मछुए को मल्लयुद्ध सिखाकर तैयार किया । अब की बार अट्टण फिर आया लेकिन वह पराजित हो गया । वह सौराष्ट्र के भरुकच्छहरणी नामक गांव में पहुंचा और वहां उसने वमन-विरेचन आदि देकर एक किसान को मल्लयुद्ध को शिक्षा दी। इसका नाम रक्खा गया फलहिय (कपास वाला ) मल्ल | अब की बार अट्टण फलहिय को लेकर शूर्पारक पहुंचा। फलहिय और मच्छिअ ( मछुआ ) में युद्ध होने लगा । पहले दिन दोनों बराबर रहे । फलहिय के जहां-जहां दुखन हो गयो थी, वहां मालिश और सेक की गयी। मच्छिय के पास राजा ने अपने संमर्दकों को भेजा। दूसरे दिन फिर मल्लयुद्ध हुआ, लेकिन फिर दोनों बराबर रहे। तीसरे दिन युद्ध की फिर घोषणा हुई । अब को बार अशक्त होकर मच्छिय दहो मथने के आसन ( वइसाहठाण ) से खड़ा हो गया | अट्टण ने फलहिय को ललकारा और उसने मच्छिय को पकड़कर पटक दिया। यह देखकर राजा ने फलहिय का आदर-सत्कार किया । कुछ समय बाद अटटण कौशांबी पहुँचा और रसायन आदि का सेवन कर यह फिर से बलिष्ठ हो गया । यहां के युद्धमह में उसने राजमल्ल निरंगण को हरा १. वही ५.५८३८; निशीथचूर्णी १०.२९३७ । - २. आचारांग २, १-२, पृ० ३०४ । ३. निशीथचूर्णी १२.२३ की चूर्णी ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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