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________________ ३६४ जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज [च० खण्ड है तो उसे पहेणग कहते हैं। प्रति मास मृतक के लिए दिये जाते हुए भोजन को हिंगोल अथवा करडुयभक्त कहा है।' पिंडणिगर में पिता का श्राद्ध किया जाता था। देवताओं को अर्पित किये जाने वाले अन्न को निवेदनापिंड कहा है। जैन परम्परा के अनुसार, राजा श्रेणिक के समय से इसका चलन आरम्भ हुआ था। सम्मेल अथवा गोष्ठी में अपने सम्बन्धियों और मित्रों को भोजन के लिए निमंत्रित किया जाता था। इस समय गांव के अनेक लोग इकट्ठे होते, तथा भोजन आदि करते ।" गोष्ठियों को राजा की ओर से परवाना मिला रहता था और गोष्ठो के सदस्य माता-पिता की परवा न कर अवारागर्दी में घूमा करते थे। गोष्ठी में महत्तर, अनुमहत्तर, ललितासनिक, कटुक ( दंड का निर्णायक ) और दंडपति का प्रमुख स्थान रहता था। पाणागार (मद्यशाला) और द्यतगृह में लोग मद्यपान करते और जूआ खेलते थे | उज्जाणिया का त्योहार उद्यान में जाकर मनाया जाता था। संखडि ( भोज) संखडि अथवा भोज एक महत्वपूर्ण त्यौहार था । अधिक संख्या में जीवों की हत्या होने के कारण इसे संखडि कहते थे । यह त्यौहार एक दिन ( एगदिवसम् ) अथवा अनेक दिनी ( अणेगदिवसम् ) तक मनाया जाता था | अनेक पुरुष मिलकर एक दिन की अथवा १. आचारांग २, १.३.२४५, पृ० ३०४; निशीथसूत्र ११.८० की चूर्णी । २. निशीथसूत्र ८.१४ की चूर्णी । पितृपिंडनिवेदना का उल्लेख आवश्यकचूर्णी २, पृ० १७२ में मिलता है । ३. निशीथसूत्र ११.८१ । ४. आवश्यकचूर्णा २, पृ० १७२। ५. निशीथसूत्र ११.८० की चूर्णी; आचारांग, वही । ६. ज्ञातृधर्मकथा १६, पृ० १७४ । ७. बृहत्कल्पभाष्य २.३५७४-७६ । ८. निशीथचूर्णी ८, पृ० ४३३; आवश्यकचूर्णी पृ० २९५ । । ९. पालि में संखति कहा गया है, मज्झिमनिकाय २,१६ पृ० १३१ । १०. भोज्जं ति वा संखडित्ति वा एगळं, बृहत्कल्पभाष्य १.३१७९ की चूर्णी । ११. संखडिज्जति जहिं आउणि जियाण, बृहत्कल्पभाष्य १.३१४०; तथा निशीथसूत्र ३.१४ की चूर्णी; आचारांग २,१.२, पृ० २९८-अ-३०४ ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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