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________________ च० खण्ड] छठा अध्याय : रीति-रिवाज ३६३ प्रमोद घोषित किया गया। इस अवसर पर प्रजा का कर माफ कर दिया गया और सब लोग हर्षातिरेक से झूमने लगे।' पयूषण आदि पव धार्मिक उत्सवों में पन्जोसण (पर्युषण) पर्व का सबसे अधिक महत्व था। यह पर्व पूर्णिमा, पंचमी और दसमी आदि पर्व के दिनों में मनाया जाता था। लेकिन आर्यकालक के समय से यह पंचमी के स्थान पर चतुर्थी को मनाया जाने लगा | एक बार, कालक उज्जैनी से निर्वासित होकर प्रतिष्ठान पधारे | राजा सातवाहन ने बहुत ठाठ के साथ उनका स्वागत किया। कालक ने भाद्रसुदो पंचमी को पयूषण मनाये जाने की घोषणा की। लेकिन राज्य की ओर से यह तिथि इन्द्रमहोत्सव के लिए निश्चित की जा चुकी थी। इस पर युगप्रधान आयकालक ने पंचमी को बदल कर चतुर्थी कर दी, और तबसे चतुर्थी को ही पर्दूषण मनाया जाने लगा। महाराष्ट्र में यह पर्व श्रमणपूजा (समणपूय) के नाम से प्रसिद्ध हुआ । जैनधर्म के महान् प्रचारक कहे जाने वाले राजा सम्प्रति के समय अनुयान ( रथयात्रा) महोत्सव बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता था। इस अवसर पर सम्प्रति स्वयं अपने भट और भोजिकों को लेकर रथ के साथ-साथ चलता और रथ पर विविध वस्त्र, फल और कौड़ियाँ चढ़ाता।' घरेलू त्योहार अनेक घरेलू त्यौहार भी मनाये जाते थे। विवाह के पूर्व तांबूल आदि प्रदान करने को आवाह कहा गया है ।" विवाह के पश्चात् वर के घर प्रवेश कर, वधू के भोजन करने को आहेणग कहते हैं। कुछ समय वर के घर रहने के पश्चात् जब वह अपने पिता के घर लौटती १. विपाकसूत्र ३, पृ० २७ ।। २. इसे परियायवत्थणा, पज्जोसवणा, परिवसणा, पज्जुसणा, वासावास, पढमसमोसरण, ठवणा और जेठोग्गह नाम से भी कहा गया है, निशीथभाष्य १०.३१३८-३९ । ३. निशीथचूर्णी १०.३१५३ की चूर्णी, पृ० १३१ । . ४. बृहत्कल्पभाष्य १.३२८५ । ५ जीवाभिगम ३, पृ० २८०-अ, बृहत्कल्पभाष्य ३.४७१६ । पियदसि के ९ वें आदेशपत्र में पुत्र के विवाह को अवाह और कन्या के विवाह को विवाह कहा गया है; तथा दीघनिकाय १, अंबठसुत्त, पृ० ८६ ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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