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जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज
[ च० खण्ड
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( बहुम्लेच्छमह ) में अनेक म्लेच्छ इकट्ठे होते थे ।' श्रावस्ती में दासियों का त्यौहार मनाया जाता था जिसे दासीमह कहते थे । थाणुप्पा (स्थानोत्पातिक) नामक मह अचानक किसी अतिथि के आ जाने पर मनाया जाता था । इट्टगा ( सेवकिकाक्षण - टीका ) सेवइयों का त्यौहार था, जिसकी तुलना उत्तर भारत के रक्षाबंधन या सलूनों से की जा सकती है । खेत में हल चलाते समय सीता ( हलपद्धतिदेवता - हल से पड़ने वाली रेखायें ) की पूजा की जाती थी। इस अवसर पर भात आदि पका कर यतियों को दिया जाता था ।"
पुत्रोत्सव
पुत्रोत्पत्ति का उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जाता था । यह दस दिन चलता था और इस बीच में कर आदि वसूल करने के लिए कोई राज-कर्मचारी किसी के घर में प्रवेश नहीं कर सकता था । श्रावस्ती के राजा रुप्पी की कन्या सुबाहू द्वारा चाउम्मासियमज्जणय (चातुर्मासिकमज्जनक) मनाने का उल्लेख मिलता है । इस अवसर पर राजमार्ग पर एक पुष्पमंडप बनाकर उसे पुष्प मालाओं से शोभित श्रीदामगंड (मालाओं का समूह) द्वारा अलंकृत किया गया । विविध प्रकार के पंचरंगी तंदुलों से नगर को सजाया गया । पुष्पमंडप के बीचों बीच एक पट्ट स्थापित किया गया । तत्पश्चात् राजकुमारी को पट्ट पर बैठाकर श्वेत-पीत कलशों से उसका अभिषेक किया गया । संवच्छरपडिलेहण ( संवत्सरप्रतिलेखन ) एक प्रकार का जन्मदिन था जो प्रतिवर्ष मनाया जाता था । मिथिला के राजा कुंभक की कन्या मल्लिकुमारी का जन्मदिन बहुत धूमधाम से मनाया गया था । पुरिमताल के राजा महाबल को कूटागारशाला के तैयार हो जाने पर नगर में दस दिन का
१. निशीथचूर्णी १२.४१३९ की चूर्णी ।
२. उत्तराध्ययनटीका ८, पृ० १२४ ।
३. बृहत्कल्पभाष्य १.१८१४ ।
४.
• पिंडनियुक्ति ४६६; निशीथचूर्णी १३.४४४३ ।
५. बृहत्कल्पभाष्य २.३६४७ ।
६. देखिए पीछे, पृ० २४२ ।
७. ज्ञातृधर्मकथा ८, पृ० १०३ । ८. वही ८, पृ० ९६ ।