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________________ ३५८ जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज [ च० खण्ड पड़ा हो, बिल्ली चूहे को मारकर डाल गयी हो, अंडा फूटकर गिर गया हो, मांस से लिप्त श्वान वसति के पास आ बैठा हो, टूटा हुआ दांत पड़ा हुआ हो, अथवा मातंगों के आडम्बर यक्ष के नीचे किसी हाल में ही मरे हुए की हड्डियां गाड़ो गयी हों, तो स्वाध्याय न करे । ' वस्त्रसम्बन्धी शकुन साधुओं के वस्त्रों के सम्बन्ध में भी बहुत से विधान हैं | यदि वस्त्र के चारों कोने अंजन, खंजन ( दीपमल = काजल ) और कीचड़ आदि से युक्त हों तो उसे लाभकारी बताया है । यदि वस्त्र को चूहों ने खा लिया हो, अग्नि से वह जल गया हो, धोबी के कूटने-पीटने से उसमें छेद हो गया हो, अति जीर्ण होने से वह फट गया हो तो उसे शुभ और अशुभ परिणाम वाला कहा गया है ।' अन्य शुभाशुभ शकुन अन्य भी अनेक प्रकार के शुभ और अशुभ शकुनों का प्रचार तत्कालीन समाज में था । उदाहरण के लिए, किसी महोत्सव आदि में आते समय जैन श्रमण का दर्शन अमंगल-सूचक माना जाता था । कभी ध्यान में अवस्थित नग्न साधुओं को देखकर कर्मकर लोग मजाक में कहते - "आज तो दर्पण के देखने से हमारा मुख ही पवित्र हो गया है !" या फिर सुबह ही सुबह उन्हें देखकर कुछ लोग आपस में बातचीत करते - “ आज तो प्रभात में ही हम लोगों को दर्पण के दर्शन हुए हैं, फिर हमें सुख कहां नसीब हो सकता है ? ४ लेकिन श्रद्धालु भक्तगण उन्हें अत्यन्त आदर की दृष्टि से देखते और नूतन गृह आदि में उनका प्रवेश कराकर अपना अहोभाग्य समझते । " राजा लोग पापनाशन के लिए पुरोहितों को नियुक्त करते थे । सूतक और पातक दस दिन चलते थे। सिंधु देश में अग्नि को और अनध्याय के लिये देखिये याज्ञवल्क्य १. निशीथभाष्य ६१०० - ६११२ । स्मृति ६.१४४-५३ । २. बृहत्कल्पभाष्य १.२८३० - ३१ । शार्पेण्टियर उत्तराध्ययन सूत्र, पृ० ३३६ । वराहमिहिर ने बृहत्संहिता के ७० वें अध्याय में वस्त्रच्छेदलक्षण का कथन किया है । तथा देखिए मंगल जातक ( ८७ ), १, पृ० ४८५ आदि । ३. बृहत्कल्पभाष्य १.१४५१ । ४. वही १.२६३६ । ५. वही १.१६७९ । ६. व्यवहारभाष्यपीठिका १८ ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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