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च० खण्ड] . छठा अध्याय : रीति-रिवाज
३५७ तो एक भी पुतला बनाने की आवश्यकता नहीं।' इसके अतिरिक्त जिस दिशा में शव स्थापित किया गया हो, वहाँ गीदड़ आदि द्वारा खींचकर ले जाये जाने पर भी, यदि शव अक्षत रहता है तो उस दिशा में सुभिक्ष और सुख-विहार होता है। जितने दिन जिस दिशा में शव अक्षत रहे, उतने ही वर्ष तक उस दिशा में सुभिक्ष रहने और परचक्र के उपद्रव का अभाव बताया है। यदि कदाचित् शव क्षत हो जाये तो दुर्भिक्ष आदि की संभावना है।
किसी साधु के रुग्ण हो जाने पर यदि अन्य साधुओं को वैद्य के घर जाना पड़े तो उस समय भी शकुन विचार कर प्रस्थान करने का विधान है । उदाहरण के लिए, वैद्य के पास अकेले, दुकेले या चार की संख्या में न जाये, तीन या पाँच की संख्या में ही गमन करना चाहिये । यदि चलते समय द्वार में सिर लग जाये और साधु गिर पड़े, या जाते समय कोई टोक दे, या कोई छींक दे तो इसे अपशकुन समझना चाहिये ।
स्वाध्यायसम्बन्धी शकुन साधुओं के स्वाध्याय के सम्बन्ध में भी अनेक विधान हैं। पूर्व संध्या, अपर संध्या, अपराह्न और अर्धरात्रि में स्वाध्याय करने का निषेध है । संध्या के समय स्वाध्याय करने से गुह्यकों से ठगे जाने का भय बताया गया है। चार महामह और चार महाप्रतिपदाओं के दिन स्वाध्याय का निषेध किया है। यदि कुहरा पड़ रहा हो अथवा धूल, मांस, रुधिर, केश, ओले आदि की वर्षा हो रही हो, भूकम्प आया हो, चन्द्र या सूर्य ग्रहण लग रहा हो, बिजली चमक रही हो, लूका (उल्का) गिर रही हो, सन्ध्याप्रभा और चन्द्रप्रभा मिलकर एक हो गयी हो (जूवग ), मेघगर्जन की ध्वनि सुनायी पड़ रही हो, दो सेनापतियों, ग्राम-महत्तरों, स्त्रियों और पहलवानी ( मल्ल ) में युद्ध हो रहा हो, राज्य पर बोधिक चोरों का आक्रमण हुआ हो तो ऐसी दशा में स्वाध्याय का निषेध है। इसी प्रकार यदि वसति में मांस
१. बृहत्कल्पभाष्य ४.५५२७ । २. वही ४.५५५४-५६ । ३. वही १.१९२१-२४ । ४. निशीथसूत्र १९.८; भाष्य १९.६०५४-५५ । ५. वही १९.११-१२। ६. निशीथभाष्य १९.६०७९-६०६५; आवश्यकचूर्णी २, पृ० २१८ आदि।