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________________ ३५६ जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज [च० खण्ड शुभ-अशुभ दिशाएँ दिशाओं को भी शुभ और अशुभ माना गया है। तीर्थकर पूर्व की ओर मुँह करके बैठते हैं । जब कोई व्यक्ति दीक्षा ग्रहण करने के लिए तीर्थकर के पास पहुँचता तो उसे पूर्वाभिमुख हो बैठाया जाता । क्षत्रियकुमार जामालि को उसके माता-पिता ने सिंहासन पर पूर्व की ओर मुँह करके बैठाया था। शव को जलाते समय भी दिशा का ज्ञान अत्यन्त आवश्यक था। किसी साधु के कालगत हो जाने पर, उसके क्रिया-कर्म के वास्ते, सर्वप्रथम नैऋत दिशा देखनी चाहिए, नहीं तो फिर दक्षिण, पश्चिम, आग्नेय, वायव्य, पूर्व, उत्तर और उत्तर-पूर्व दिशा भी चुनी जा सकती है। मान्यता है कि नैऋत दिशा में शवस्थापन करने से साधुओं को प्रचुर अन्न, पान और वस्त्र का लाभ होता है । लेकिन नैऋत दिशा के होने पर यदि दक्षिण दिशा चुनो जाय तो अन्न और पान प्राप्त नहीं होते, पश्चिम दिशा चुनी जाय तो उपकरण नहीं मिलते, आग्नेयी चुनी जाय तो साधुओं में परस्पर कलह होने लगती है, वायव्य चुनी जाय तो संयत, गृहस्थ तथा अन्य तोर्थिकों के साथ खटपट की सम्भावना है, पूर्व दिशा को पसन्द करने से गण या चारित्र में भेद हो जाता है, उत्तर दिशा को पसन्द करने से रोग हो जाता है, और उत्तर-पूर्व दिशा को पसन्द करने से दूसरे साधु के मरण को संभावना रहती है। उत्तर और पूर्व दिशाओं को लोक में पूज्य कहा गया है, अतएव शौच के समय इन दिशाओं की ओर पीठ करके नहीं बैठना चाहिये। शुभाशुभ विचार साधु के कालगत होने पर शुभ नक्षत्र में ही उसे ले जाने का विधान है। नक्षत्र देखने पर यदि सार्धक्षेत्र ( ४५ मुहूर्त भोग्य ) हो तो डाभ के दो पुतले बनाने चाहिए, अन्यथा अन्य दो साधुओं का अपकर्षण होता है । यदि समक्षेत्र (३० मुहूर्त भोग्य ) हो तो एक ही पुतला बनाना चाहिए और यदि अपार्ध-क्षेत्र ( १५ मुहूर्त भोग्य ) हो १. दिसापोक्खी सम्प्रदाय के अस्तित्व से भी दिशाओं का महत्व सूचित होता है। २. व्याख्याप्रज्ञप्ति ९.६ । ३. बृहत्कल्पभाष्य ४.५५०५ आदि; तथा भगवती आराधना १९७०आदि । ४. बृहत्कल्पभाष्यपीठिका ४५६-५७ ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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