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________________ ३५४ जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज [ च० खण्ड सुनाई दे (नन्दितूर्य), शंख और पटह का शब्द सुन पड़े, तथा पूर्ण कलश,' भृंगार, छत्र, चमर, वाहन, यान, श्रमण, पुष्प, मोदक, दही, मत्स्य, घंटा और पताका का दर्शन हो तो उसे शुभ बताया हैं । यद्यपि सामान्यतया श्रमणों के दर्शन को प्रशस्त कहा है, लेकिन रक्तपट (बौद्ध), चरक ( काणाद ) और तापसों ( सरजस्क ) के दर्शन को अच्छा नहीं बताया । इसके सिवाय, रोगी, विकलांग, आतुर, वैद्य, काषाय वस्त्रधारी, धूलि से धूसरित, मलिन शरीर वाले, जीर्ण वस्त्रधारी, बायें हाथ से दाहिने हाथ की ओर जाने वाले स्नेहाभ्यक्त श्वान, कुब्जक और बौने, तथा गर्भवती नारी, वडकुमारी ( बहुत समय तक जो कुंवारी हो ), काष्ठभार को वहन करने वाले और कुचंधर ( कूंचंधर ) के दर्शन को अपशकुन कहा है; इनके दर्शन से उद्देश्य को सिद्धि नहीं होती । यदि चक्रचर का दर्शन हो जाय तो बहुत भ्रमण करना पड़ता है, पांडुरंग का दर्शन हो तो भूखे मरना होता है, तनिक ( बौद्ध साधु ) का हो तो रुधिरपात होता है और बोटिकका दर्शन होने से निश्चय मरण हो समझना चाहिए । पाटलिपुत्र में राजा मुरुण्ड राज्य करता था । एक बार, उसने अपने दूत को पुरुषपुर भेजा। लेकिन वहां रक्तपट साधुओं को देख, उसने राजभवन में प्रवेश नहीं किया । एक दिन राजा के अमात्य ने उसे बताया कि यदि रक्तपट गली के भीतर या बाहर मिलें तो उन्हें अपशकुन नहीं समझना चाहिए ।" ६ ७ पक्षियों में जंबूक, चास, मयूर, भारद्वाज और नकुल शुभ १. लेकिन चोर और किसान के लिए खाली घड़े को प्रशस्त कहा गया है, बृहत्कल्पभाष्यपीठिका १० टीका । २. बृहत्कल्पभाष्य १.१५४९-५०; ओघनियुक्तिभाष्य १०८ - ११० । ३. लेकिन वाइल नामक वणिक ने यात्रा के लिए प्रस्थान करते समय भगवान् महावीर के दर्शन को अमंगल सूचक ही माना, आवश्यकचूर्णी, पृ० ३२० । ४. बृहत्कल्पभाष्य १५४७-४८; ओघनियुक्तिभाष्य ८२-४ । ५. बृहत्कल्पभाष्य १.२२९२-९३ । ६. तुलना कीजिए आवश्यकचूर्णी २, पृ० १७९ । तथा देखिए बृहत्संहिता के शिवास्त ( ८९ वां अध्याय ), वायसविरुत ( अध्याय ९४ ) और मृगचेष्टित ( अध्याय ९० ) नामक अध्याय । ७. जहां चास पक्षो बैठा हो वहां गृहनिर्माण करने से राजा को रत्नों की
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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