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० खण्ड ]
छठा अध्याय : रीति-रिवाज
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पूर्ण किया ।" अवरकंका का राजा पद्मनाभ भी अपने किसी पूर्वसंगिक देव की आराधना करने के लिए प्रौषधशाला में पहुँचा, और उसके सिद्ध हो जाने पर उसे द्रौपदी का अपहरण कर लाने को कहा । देव लवणसमुद्र से होकर सीधा हस्तिनापुर पहुँचा और अवस्वापिनी विद्या की सहायता से द्रौपदी को हर लाया । द्रौपदी को अवरकंका से लौटा लाने के लिए कृष्ण-वासुदेव ने भी सुस्थित देव की आराधना की। उनका अष्टम भक्त समाप्त होने पर देव ने उपस्थित होकर आदेश मांगा । कृष्ण ने रथ द्वारा अवरकंका पहुँचने के लिए लवणसमुद्र का पुल बांधने का आदेश दिया |
शुभाशुभ शकुन
जैनसूत्रों में अनेक शुभ-अशुभ शकुनों का उल्लेख मिलता है । यहाँ जगह-जगह स्नान, बलिकर्म, कौतुक, मंगल प्रायश्चित्त का उल्लेख है । जब लोग किसी मंदिर, साधु-संन्यासी, राजा या महान् पुरुष के दर्शनों के लिए जाते तो पहले स्नान करते, गृह-देवताओं को बलि देते, तिलक आदि लगाते, सरसों, दही, अक्षत और दूर्वा आदि ग्रहण करते और प्रायश्चित्त ( पायच्छित्त, अथवा पादच्छुप्त = नेत्र रोग दूर करने के लिए पैरों में तेल लगाना ) करते । राजगृह के धन्य सार्थवाह की पत्नी भद्रा के सन्तान नहीं होती थी; वह स्नान करके आर्द्र वस्त्र पहन पुष्कfरणी से निकली और नाग आदि देवताओं की आराधना करने चली । " सूर्योदय होने पर लोग दंतप्रक्षालन करते, फिर सिर में तेल लगा, बालों में कंघी ( फणिह ) कर, सरसों को सिर पर प्रक्षिप्त कर, हरताल लगा, तांबूल का भक्षण कर, तथा सुगंधित माला आदि धारण करके राजकुल, देवकुल, उद्यान, और सभा आदि के लिए प्रस्थान करते ।
अनेक वस्तुओं का दर्शन शुभ और अनेक का अशुभ माना गया है । उदाहरण के लिए, यदि बारह प्रकार के वाद्यों की ध्वनि एक साथ
१. ज्ञातृधर्मकथा १, पृ० १५ आदि ।
२. वही १६, पृ० १८६ ।
३. वही पृ० १९० ।
४. वही १, पृ० ८ । महामंगल जातक ( ४५३ ), ४, पृ० २७८ में मैत्री भावना को मंगल बताया गया है ।
५. ज्ञातृधर्मकथा २, पृ० ५० । ६. अनुयोगद्वारसूत्र १९, पृ० २१ । २३ जै० भा०