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________________ ३५२ जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज [ च० खण्ड आकाशगामी विद्या सिद्ध की ।' सत्यकी का उल्लेख किया जा चुका है। महारोहिणी सिद्ध करने के लिए उसने श्मशान में जाकर किसी अनाथ मुर्दे की चिता में आग दी, और गीला चर्म ओढ़कर, बायें पैर के अंगूठ से तब तक चलता रहा जब तक कि चिता प्रज्वलित न हो गयी । सात रात्रियाँ व्यतीत हो जाने पर उसे विद्या सिद्ध हुई ।" लक्षणयुक्त पुरुष को मारकर उसके शरीर से विद्या मंत्र की सिद्धि की जाती थी । नदुमत्त का उल्लेख आ चुका है । वह बांस के एक कुंज में अपने पैरों को ऊपर बांधकर, उल्टे लटक, धूम्रपान करता हुआ विद्या सिद्ध करने लगा ।' राजा श्रेणिक जब तक सिंहासन पर बैठा रहा और मातंग भूमि पर खड़ा रहा, तब तक विद्या सिद्ध नहीं हुई । लेकिन राजा ज्यों ही अपना आसन छोड़कर मातंग के स्थान पर आया, और मातंग को उसने अपने स्थान पर बैठा दिया, तो विद्या सिद्ध होने में देर न लगी ।' कहते हैं कि मिथ्या भाषण करने से विद्या की शक्ति नष्ट हो जाती थी। : देव-आराधना A कार्य सिद्धि के लिए अलौकिक शक्ति सम्पन्न देवताओं की आराधना की जाती थी । राजा श्रेणिक की रानी का दोहद पूरा करने के लिए मंत्री अभयकुमार देव की आराधनार्थ प्रौषधशाला में गया। वहां पहुँच कर मणि, सुवर्ण, माला, चन्दन विलेपन, तथा क्षुरिका और मुशल आदि का त्यागकर, वह दर्भ के आसन पर आसीन हुआ, और अष्टम भक्त (तीन दिन का उपवास ) पूर्वक देवता की आराधना करने लगा । कुछ समय पश्चात् देवता का आसन चलायमान हुआ और उसने फौरन ही राजगृह की ओर प्रस्थान किया । शीघ्र हो आकाश मेवों से आच्छन्न हो गया और वर्षा होने लगी। तत्पश्चात् रानी ने हाथी पर सवार होकर वैभार पर्वत के आसपास भ्रमण करते हुए अपना दोहद १. निशीथचूर्णोपीठिका २४ की चूर्णा, पृ० १६ । २. आवश्यकचूर्णी २, पृ० १७५ । ३. आचारांगटीका १.६, पृ० ६५-अ । ४. उत्तराध्ययनटीका १३, पृ० १८९-अ । ५. दशवैकालिकचूर्णी पृ० ४५ । तुलना कीजिए छवजातक ( ३०९ ), ३, पृ० १९८-९९ के साथ ६. दशवैकालिकचूर्णी, पृ० १०० | तुलना कीजिए अंबजातक ( ४७४ ), ४, पृ० ४०२ के साथ |
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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