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च० खण्ड ]
छठा अध्याय : रीति-रिवाज
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हो ), पट, दर्पण, खड्ग, जल, भित्ति अथवा बाहु आदि में अवतरित देवता से प्रश्न पूछा जाता था । प्रश्नातिप्रश्न में स्वप्न में अवतीर्ण विद्या द्वारा अथवा विद्या से अधिष्ठित देवता द्वारा प्रश्न का उत्तर दिया जाता था; अथवा डोम्बी ( आइंखिणिया ) के कुलदेवता घंटिक यक्ष द्वारा प्रश्न का उत्तर कान में कहा जाता था । यह उत्तर वह डोम्बी दूसरों से कहती थी । निमित द्वारा भूत, भविष्य और वर्तमान में लाभ और हानि का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता था । चूड़ामणि निमित्तशास्त्र का एक महत्त्वपूर्ण ग्रंथ था । " निमित्तोपजीवी कल्क ( लोध्र आदि से जंघाओं का घिसना, अथवा शरीर पर लोध्र आदि का उबटन मलना ), कुरुकुचा ( शरीर का प्रक्षालन ), ३ लक्षण ( स्त्री-पुरुषों के हस्त, पाद आदि के लक्षणों का कथन ), व्यंजन ( मसा, तिल आदि सम्बन्धी कथन ), स्वप्न ( शुभ-अशुभ स्वप्न का फल ), मूल कर्म ( रोग की शान्ति के लिए कंदमूल अथवा गर्भादान और गर्भशातन के लिए औषधि आदि का उपदेश ), तथा मंत्र और विद्या आदि द्वारा अपनी आजीविका चलते थे 1
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विद्यासिद्धि
विद्या और मंत्र की सिद्धि के लिए अनेक जप-तप आदि करने पड़ते थे । इसके लिए कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी अथवा अष्टमी की रात को साधक लोग श्मशान में जाकर तप करते थे । कोई श्रावक श्मशान में जाकर खेचरी विद्या सिद्ध करना चाहता था । पहले तो उसने तीन पांव का छींका तैयार कर उसके नीचे खदिर वृक्ष का एक त्रिशूल गाड़कर आग जलायी । फिर, १०८ बार मंत्र का जाप कर छींके की एकएक रस्सी काटता गया और इस विधि से उसने चार रस्सियां काटकर
१. बृहत्कल्पभाष्य १.१३११-१३; निशीथचूर्णी, वही ।
२. व्यवहारभाष्य १, पृ० ११७; निशीथचूर्णी १३.४३४५ की चूर्णी । ३. नेमिचन्द्र के प्रवचनसारोद्धार में कक्ककुरुका शब्द का अर्थ 'निकृत्या - शाठ्येन परेषां दंभनं' किया गया है ।
४. यथातथ्य, प्रदान, चिन्ता, विपरीत और अव्यक्त नाम के स्वप्नों के लिए देखिये निशीथभाष्य १३.४३०० ।
५. निशीथचूर्णी १३.४३४५ की चूर्णी । यहां निमित्त से आजीविका चलाने वाले साधुओं को कुशील कहा है ।