________________
३५०
जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज [च० खण्ड
जादू-टोना और झाड़-फूंक जादू-टोना ओर झाड़-फूंक आदि का विधान मिलता है। लोग स्नान करने के पश्चात् , प्रायः कौतुक (काजल का तिलक आदि लगाना ), मंगल ( सरसों, दही, अक्षत, और दूर्वा आदि का उपयोग) और प्रायश्चित्त आदि किया करते थे।' प्राचीन सूत्रों में कौतुक, भूतिकर्म, प्रश्न, प्रश्नातिप्रश्न, लक्षण, व्यंजन और स्वप्न आदि का उल्लेख मिलता है । कौतुक के नौ भेद बताये गये हैं—(१) विस्नपनबालकों की रक्षा के लिए, अथवा स्त्रियों को सौभाग्यवती बनाने के लिए श्मशान अथवा चौराहों पर स्नान कराना, (२) होम-शान्ति के लिए अग्नि का होम करना, (३) शिरपरिरय-सिर (टोका में हाथ ?) को हिलाते हुए मंत्रपाठ करना, (४) क्षारदहन-व्याधि को शान्त करने के लिए अग्नि में नमक प्रक्षेपण करना, (५) धूप-अग्नि में धूप डालना, (६) असदृशवेषग्रहण-आयें द्वारा अनार्य अथवा पुरुप द्वारा स्त्री का .. वेष धारण किया जाना, (७) अवयासन-वृक्ष आदि का आलिंगन करना, (८) अवस्तोभन-अनिष्ट की शान्ति के लिए थूथू करना, (९) बंध-नजर से बचने के लिए ताबोज आदि बाधना । शरीर की रक्षा के लिये अभिमंत्रित की हुई भस्म मलने अथवा डोरा आदि बाँधने को भूतिकर्म कहते हैं। कभी भस्म की जगह गीली मिट्टी का भी उपयोग किया जाता था। जैन श्रमण अपनी वसति, शरीर और उपकरण आदि की रक्षा के लिए, चोरों से बचने के लिए अथवा ज्वर आदि का स्तंभन करने के लिए भूति का उपयोग करते थे। कहीं भूतिकर्म के पश्चात् नवजात शिशु के गले में रक्षापोटली ( रक्खापोलिय) बांधी जाती थी। प्रश्न में अंगूठे, उच्छिष्ट (कंसार आदि जो खाने से वाकी रह गया
१. ज्ञातृधर्मकथा १, पृ० ८; कल्पसूत्र ४.६७ । २. निशीथसूत्र १३. १७-२७ ।
३. बृहत्कल्पभाष्य १.१३०९ और टीका; निशीथभाष्य १३, पृ० ३८३ आदि । व्यवहारभाष्य १, पृ० ११६-अ में कौतुक का अर्थ आश्चर्य किया गया है । इसके द्वारा कोई मायावी मुंह में लोहे के गोले रखकर उन्हें कानों से निकालता है । वह नाक और मुंह से अग्नि निकालता है । अथवा सौभाग्य आदि के लिए स्नान आदि करने को कौतुक कहा गया है।
४. बृहत्कल्पभाष्य १.१३१०।।
५. आवश्यकचूर्णी, पृ० १४० । रक्षाविधि का वर्णन चरक, शारीरस्थान, १, ८.५१, पृ० ७२९ आदि में किया गया है।