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________________ च० खण्ड] छठा अध्याय : रीति-रिवाज ... ३४६ जैन आगम-साहित्य के अध्ययन से पता लगता है कि विद्याधरों और मानवों के बोच सहानुभूतिपूर्ण सम्बन्ध थे; उनमें शादी-विवाह भी होते थे । राजा श्रेणिक की किसी विद्याधर से मित्रता थी, और श्रेणिक ने उससे अपनी बहन का विवाह किया था। ब्रह्मदत्त, सनत्कुमार' और महापद्म नामक' चक्रवर्तियों द्वारा भी विद्याधर-कन्याओं के साथ विवाह किये जाने का उल्लेख आता है। कहते हैं कि जब नमत्त नाम का विद्याधर किसी राजकुमारी के तेज को सहन न कर सका तो उसे विद्यानिर्मित प्रासाद में छोड़, वह वंश के कुंज में विद्या सिद्ध करने चला गया । विद्याधर मनुष्यों की सेवा में उपस्थित रहते और संकट के समय उनकी सहायता करते थे। कभी किसी बात को लेकर दोनों में युद्ध भी ठन जाता था। विद्याधर अनेक विद्याओं का प्रयोग करने में अत्यन्त कुशल थे। नटुमत्त विद्याधर का उल्लेख किया जा चुका है। वह अपनी विद्या के बल से पुष्पचुल राजा की कन्या को उठाकर ले गया था। नट्टमत्त ने राजकुमारी को संकरी विद्या प्रदान करते हुए कहा-"यह विद्या पठितसिद्ध है तथा स्मरणमात्र से सखी और दासी सहित उपस्थित होकर तुम्हारी आज्ञा का पालन करेगी। यह शत्रु को पास आने से रोकेगी और प्रश्न करने पर मेरी प्रवृत्तियों के सम्बन्ध में तुम्हें सूचित करेगी।" वैताली विद्या का भी ये लोग प्रयोग करते थे। कहते हैं कि इस विद्या के प्रभाव से अचेतन काष्ठ भी खड़ा हो जाता और चेतन वस्तु की भांति प्रवृत्ति करने लगता था। अशनिघोष विद्याधर अपनी कन्या सुतारा को इस विद्या के द्वारा हरण करके लाया था।' वेगवती विद्या भी अपहरण करने के काम में आती थी। १. आवश्यकचूर्णी २. पृ० १६० । २. उत्तराध्ययनटीका १३, पृ० १९४ । ३. वही, १८, पृ० २३७ । ४. वही, पृ० २४७ । ५. वही १३, पृ० १८९-अ । ६. वही १८, पृ० २३८-अ; तथा वसुदेवहिंडी, पृ० २४३ । ७. उत्तराध्ययनटीका १८, पृ० २३८-अ, १८, पृ० २४७-अ। . ८. वही १३, पृ० १८९-अ । ९. वही १८, पृ. २४२-अ। १०. वही १८, पृ० २४७ ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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