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च० खण्ड ]
छठा अध्याय : रीति-रिवाज
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पयोग आदि को अत्यन्त शक्तिशाली बताया गया है ।" विधिपूर्वक मन्त्र से परिगृहीत यदि विष का भी भक्षण कर लिया जाये तो उससे कोई हानि नहीं होती । मन्त्र शक्ति का प्रयोग करके होम और जप आदि द्वारा बेताल को भी बुलाया जा सकता है । १ विद्या, मन्त्र और औषधि को शक्ति से सम्पन्न कोई परिव्राजक नगर की सुन्दरियों का अपहरण कर लेता था । जब यह समाचार राजा के पास पहुँचाया गया तो राजा ने परिव्राजक को पकड़ कर सब नगरवासियों को स्त्रियाँ लौटा दीं, केवल एक ही ऐसी बची जो वापिस नहीं जाना चाहती थी । लेकिन परिव्राजक की हड्डियां दूध में घिसकर पिलाने से वह भी अपने पति को चाहने लगी। कोई सरजस्क साधु किसी बगीचे में एक कुइया के पास रहता था । वहाँ बहुत-सी पनिहारिन पानी भरने आया करती थीं। मौका पाकर उसने उनमें से एक स्त्री को विद्या से अभिमन्त्रित पुष्प दिये । स्त्री ने उन पुष्पों को घर ले जाकर एक पटरे पर रख दिया। लेकिन पुष्पों के अभिमन्त्रित होने के कारण रात्रि के समय गृहद्वार पर खट-खट को आवाज होने लगी ।" विद्या से अभिमन्त्रित घट का उल्लेख आता है । लोगों में मान्यता थी कि मुर्गे का सिर भक्षण करने से राजपद प्राप्त हो जाता है ।"
विविध विद्यायें
अनेक विद्याओं के नाम जैनसूत्रों में आते हैं। ओणामणी ( अवनामनी ) विद्या के प्रभाव से वृक्ष आदि को डालें झुक जाती थीं, और उण्णामिणी (उन्नामिनी) के प्रभाव से वे स्वयमेव ऊपर चलो ती थीं। राजगृह का कोई मातंग अपनी स्त्री के आम खाने के अकाल
१. निशीथचूर्णी ११.३३३७ की चूर्णी । तापस लोग कोंटलवेंटल ( मंत्र, निमित्त आदि ) से आजीविका चलाते थे, आवश्यकचूर्णी, पृ० २७५ | इसे पापश्रुत माना गया है, व्यवहारभाष्य ४, ३.३०३, पृ० ६३ ।
२. निशीथचूर्णी १५.४८६६ ।
३. वही १५.४८७० ।
४. सूत्रकृतांग २, २.३३६ टीका ।
५. निशीथचूर्णी १५.५०७४ ।
६. उत्तराध्ययनटीका ६, पृ० १११ ।
७. आवश्यकचूर्णी पृ० ५५८ ।
८. उत्पतिनी का उल्लेख कथासरित्सागर ८६, १५८ में मिलता है ।