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जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज
[ च० खण्ड
विहार किया था । निशीथभाष्य में उल्लिखित ब्रह्मद्वीपवासी एक तापस कुलपति पादलेप-योग में कुशल होने के कारण प्रत्येक अष्टमी और चतुर्दशी को बेण्या नदी पर चलकर नदी के उस पार जाता था । दशबैकालिकचूर्णी में किसी परिव्राजक का उल्लेख है जिसे आकाश - गामी विद्या प्राप्त थी ।
श्राकर्षण, वशीकरण आदि
विद्याप्रयोग और मंत्रचूर्ण के अतिरिक्त, लोग हृदय को आकर्षित कर के ( हिययउड्डावण ), तथा संगोपन ( णिण्हवण ), आकर्षण ( पण्ड्वण ), वशोकरण और अभियोग द्वारा भी जादू-मन्तर का प्रयोग करते थे । ' पोट्टला जब प्रयत्न करने पर भी अपने पति का प्रेम प्राप्त न कर सकी तो उसने किसी चूर्णयोग, मन्त्रयोग, कार्मणयोग ( कुष्ठादि रोग उत्पन्न करने वाला), काम्ययोग, ( कमनीयता में कारण ), हिययउड्डाण ( हृदय को वश में करने वाला ), काउड्डावण ( कायोड्डावन = शरीर का आकर्षण ), आभियोगिक (दूसरे के पराभव में कारण ), वशीकरण, मूल, कन्द, छाल, वल्ली, सिलिया (शिलिका = चिरायता आदि औषधि), गुटिका, औषधि और भैषज्य द्वारा उसे वश में करना चाहा । मंत्र आदि की शक्ति
विद्या, मन्त्र, तपोलब्धि, इन्द्रजाल, निमित्त, अन्तर्धान और पादले
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१. उत्तराध्ययनटीका १८, पृ० २४८-अ ।
२. निशीथचूर्णी १३.४४७० ।
३. ३, पृ० १०० ।
४. विपाकसूत्र २, पृ० १९ । निशीथसूत्र ३.७० और भाष्य ३.१५२९ में वशीकरणसूत्र ( ताबीज ) बनाने का उल्लेख है ।
५. किसी परिव्राजक द्वारा दी हुई गुटिका को मुंह में रखने से वरधणु अचेतन जैसा दिखाई दिया, और राजपुरुषों ने उसे मृत समझकर छोड़ दिया, उत्तराध्ययनटीका, १३, पृ० १९० अ । राजा उद्रायण की दासी गोली के प्रभाव से 'सुन्दर बन गयी थी और तब से वह सुवर्णाङ्गुलिका नाम से कही जाने लगी, वही, १८, पृ० २५३ - अ । राजकुमार मूलदेव गुटिका के प्रभाव से बीना हो गया और उसने देवदत्ता की कुबड़ी दासी का कुत्रड़ापन दूर कर दिया, वही ३, पृ० ५९-अ ।
६. ज्ञातृधर्मकथा १४, पृ० १५२ ।