________________
छठा अध्याय
रीति-रिवाज
जादू-टोना और अन्धविश्वास जैन साधु और मंत्र-विद्या
आदिकाल से जादू-टोना और अंध-विश्वास प्राचीन भारत के सामाजिक जीवन में महत्वपूर्ण रहे हैं । कितने ही मंत्र, मोहनी, विद्या, जादू, टोटका आदि का उल्लेख जैनसूत्रों में आता है जिनके प्रयोग से रोगी चंगे हो जाते, भूत-प्रेत भाग जाते, शत्रु हथियार डाल देते, प्रेमी और प्रेमिका एक-दूसरे की ओर आकर्षित होते, स्त्रियों का भाग्य उदय हों जाता, युद्ध में विजय लक्ष्मी प्राप्त होती और गुप्त धन मिल जाता ।
जैन आगमों के अन्तर्गत चतुर्दश पूर्वो में विद्यानुवाद पूर्व का नाम आता है जिसमें विविध मंत्र और विद्याओं का वर्णन किया गया है ।' मंखलि गोशाल को आठ महानिमित्तों में निष्णात कहा है; लोगों के हानि-लाभ, सुख-दुख और जीवन-मरण के सम्बन्ध में वह भविष्यवाणी करता था । कहते हैं कि महानिमित्तों का ज्ञान उसने छह दिशाचरों से प्राप्त किया था। पंचकल्पचूर्णी में उल्लेख है कि आर्य कालक अपने शिष्यों को तपश्चर्या में स्थिर रखने के लिए निमित्तशास्त्र के अध्ययन के वास्ते आजीविकों के पास गये थे। आगे चलकर कालक आचार्य प्रतिष्ठान के राजा सातवाहन की सभा में अपनी विद्या का प्रदर्शन
१. समवायांगटीका १४, पृ० २५-अ ।
२. भौम, उत्पात, स्वप्न, अन्तरीक्ष, अङ्ग, स्वर, लक्षण और व्यञ्जन, स्थानांग ८.६०८ । उत्तराध्ययन १५.७ में छिन्न, स्वर, भौम, अन्तरिक्ष, स्वप्न, लक्षण, दण्ड, वास्तुविद्या, अंगविचार और स्वरविजय का उल्लेख है । इन्हें सूत्र, वृत्ति और वार्तिक के भेद से २४ प्रकार का कहा है । तथा देखिए सूत्रकृतांग १२.९; समवायांगटीका २६, ४७; पिंडनियुक्तिटीका ४०८ । आवश्यकटीका ( हरिभद्र ), पृ० ६६० । तथा दीघनिकाय १, ब्रह्मजालसुत्त पृ० १०; बी० सी० लाहा, हिस्ट्री ऑव पालिलिटरेचर, १, पृ० ८२, आदि; मनुस्मृति ६.५० ।