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३३८ जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज [च० खण्ड हैं, इन्हें बांस में बांधकर घर की सफाई की जाती थी।' घर के अन्य सामान में पंखा (वीजन), छत्त (छत्र ),२ दंड,३ चमर, शीशा (आईस ), सन्दूकचो ( मंजूषा ), डिब्बा ( समुग्ग ), टोकरी (पिडय) और पिंजरे (पंजर) का उल्लेख मिलता है।
किलेबंदी नगरों की किलेबन्दी की जाती थी। नगर के चारों ओर विशाल परिखा ( फलिहा ) बनायी जाती जो ऊपर और नीचे से बराबर खुदो हुई रहती । इसमें चक्र, गदा, मुसुंढि, अवरोध, शतघ्नी और जुड़े हुए निश्च्छिद्र कपाट लगे रहते जिससे नगर में कोई प्रवेश न कर पाता । इसके चारों तरफ धनुष के समान वक्र आकार वाला प्राकार बना रहता, जो विविध आकार वाले गोलाकार कपिशीषेक, अट्टालिका, चरिका (किले और नगर के बीच का मार्ग), द्वार, गोपुर और तोरणों से शोभित होता । नगर के परिघ ( अर्गला) और इन्द्रकील ( द्वार का एक अवयव ) चतुर शिल्पियों द्वारा निर्मित किये जाते थे।"
१. राजप्रश्नीयसूत्र २१ ।
२. तीन प्रकार के छत्र बताये गये हैं-कंबल आदि की तह करके सिर पर रखना, सिर को वस्त्र से अवगुण्ठित करना, और वस्त्र को हाथ से उठाकर सिर पर तानना, निशीथभाष्य ३.१५२७ ।
३. बृहत्कल्पभाष्य ३.४०९७ । छत्र, जूते, और दण्ड के लिए देखिए गिरिजाप्रसन्न मजूमदार का 'ड्रेस' पर लेख, इण्डियन कल्चर, १, १-४, पृ० २०३-२०८ ।
४. उत्तराध्ययन १४.४१ । ५. वही ९.१८-२४; औपपातिक १ ।