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च० खण्ड ]
पांचवाँ अध्याय : कला और विज्ञान
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थी। इसमें एक-से-एक सुन्दर वैडूर्य रत्न जड़े हुए थे और पूर्वोक्त ईहामृग, वृषभ, नरतुरग आदि के चित्र निर्मित थे । यहां पर सुवर्ण और रत्नमय अनेक स्तूप थे तथा रंग-बिरंगी घण्टियों और पताकाओं से उनके शिखर शोभायमान थे । विद्याधर- युगल बने हुए थे जो यन्त्र की सहायता से चलते-फिरते थे । मण्डप को लीप-पोत कर साफ-सुथरा बनाया गया था । इसके बाहर और भीतर गोशोर्ष और रक्तचन्दन आदि सुगन्धित द्रव्यों के छापे लगे हुए थे। जगह-जगह चंदन - कलश स्थापित किये हुए थे, और द्वारों पर तोरण लटक रहे थे । सुगन्धित मालाएं शोभायमान हो रही थीं, विविध वर्णों के पुष्प महक रहे थे, और अगर आदि पदार्थों की सुगंधित धूप इधर-उधर फैल रही थी । चारों ओर वादित्रों की ध्वनि सुनायी दे रही थी और अप्सराएं अपनी टोलियों में इधर-उधर भ्रमण कर रही थीं । प्रेक्षामंडप के मध्य में एक सुंदर नाट्यगृह ( अक्खाडग ) था जो मणिपीठिका से अलंकृत था । मणिपीठिका के ऊपर मणियों से जटित एक सुन्दर सिंहासन बना हुआ था जो चक्र ( चक्कल ), सिंह, पाद पादशीर्षक, गात्र और संधियों से सुशोभित था । इस पर पूर्वोक्त ईहामृग, वृषभ और नरतुरग आदि के चित्र बने हुए थे । इसका पादपीठ मणिमय और रत्नमय था, जिसका आसन (मसूर) कोमल अस्तर ( अत्थरग ) से आच्छादित था । आसन की लटकती हुई सुन्दर झालर कोमल और केसर के तन्तुओं के समान प्रतीत होती थी । यह आसन रजस्त्राण से ढंका हुआ था और इस रजस्त्राण के ऊपर दूकूलपट्ट बिछा था। यहां के सुन्दर सोपान उत्तरण ( णिम्म ), प्रतिष्ठान (मूल प्रदेश), स्तम्भ, फलक, सूची, संधि, अवलम्बन और अवलम्बनबाहु से शोभित थे।
रानी धारिणी का शयनागार
राजा श्रेणिक की रानी धारिणी का शयनगृह ( वरगृह) बाह्य द्वार के चौकठे ( छक्कट्ठग ) से अलंकृत था, और उसके पालिश किये हुए
१. राजप्रश्नीयसूत्र ४१ आदि । सुधर्मा सभा तथा अन्य भवनों का भी इसी प्रकार का वर्णन मिलता है, वही, सूत्र १२० - ३१ । ज्ञातृधर्मकथा में राजा के प्रासाद का भी लगभग यही वर्णन है, १, पृ० २२ । शिविका के वर्णन के लिए देखिए वही, पृ० ३१ । तथा मानसार, अध्याय ४७ ।
२. राजप्रश्नीयसूत्र ३० । चुल्लवग्ग ५.१८.१८ पृ० २०९ में ईंट, पत्थर और काष्ठ के बने सोपानों का उल्लेख है ।