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३३२ जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज [च० खण्ड (मूसल लगाने का स्थान), आवर्तनपीठिका' (कब्जे) और उत्तरपार्वक (बाई ओर के पार्श्व) से शोभित थे। द्वारों में अन्तररहित घने कपाट (णिरंतरियघणकवाड ) लगे हुए थे। उनके दोनों पाश्वों के पट्टों ( भित्ति ) में गोलाकार पीठक ( भित्तिगुलिया) और बैठकें (गोमाणसोया) बनी हुई थीं । क्रोड़ा करती हुई अनेक शालभंजिकाएं वहाँ सुशोभित थीं। द्वार के ऊपर के भाग शिखर (कूड), उत्सेध, उल्लोक, जालियों से युक्त गवाक्ष (जालपंजर), पक्ष, पक्षबाहु, बांस ( बंस), कवलु (बसकवेल्लुय ), बांस के ऊपर लगायो जानेवाली पट्टियां (पट्टिया), पट्टियों को आच्छादन करनेवाली पिधानी ( ओहाडणी ),६
और पिधानो को ढंकनेवाली तृणों को बनी हुई पूंछनी (उत्ररिपुंछणो)" से अलंकृत थे। इन द्वारों के ऊपर अनेक प्रकार के तिलक और अर्धचन्द्र बनाये हुए थे । द्वारों के दोनों ओर खूटियां ( णागदन्तपरिवाडो) और उन खूटियों पर क्षुद्रघण्टिकाएं टंगी थीं। खूटियों पर लम्बी-लम्बो मालाएं और छींके ( सिकग) लटक रहे थे और इन छोंकों पर धूपघड़ियां (धूवघडी ) टंगी थीं।
नाट्यशाला यहां की नाटयशाला (प्रेक्षागृहमण्डप) अनेक स्तम्भों के ऊपर बनायी गयी थी, तथा वेदिका, तोरण और शालभंजिकाओंसे शोभित
१. योन्द्रकीलको भवति, वही ।
२. चुल्लवग्ग ५.८.१८, पृ० २०९ में आलंबनवाह, उत्तरपासक, अग्गलवट्टिक, कपिसीसक, सूचिक, घटिक आदि का उल्लेख है ।
३. शालभंजिकाओं के वर्णन के लिए देखिए सूत्र १०१। अवदानशतक ६,५३, पृ० ३०२ में उल्लेख है कि शालभंजिका का उत्सव श्रावस्ती में मनाया जाता था।
४. महतां पृष्ठवंशानामुभयवस्तिर्यकस्थाप्यमाना वंशाः । ५. वंशानामुपरि कंबास्थानीयाः। ६. आच्छादनहेतुकंबोपरिस्थाप्यमानमहाप्रमाणकिलिंचस्थानीयाः ।
७. अवघाटीनामुपरिपुंछन्यो निबिडतराच्छादनहेतुश्लक्ष्णतरतृणविशेषस्थानीयाः।
८. राजप्रश्नीयसूत्र ९७ आदि । निशीथसूत्र १३.९ में थूणा (छोटा स्तम्भ), गिहेलुय (देहली), उसुकाल (ओखली) और कामजल (स्नानपीठ ) का उल्लेख मिलता है।