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३३० जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज [च० खण्ड वय, लावण्य और यौवन आदि में हूबहू मल्लीकुमारी जैसी लगतो थी। इसके मस्तक में एक छिद्र था और उसे पद्मपत्र से ढंक रक्खा था। यन्त्रमय प्रतिमाओं का निर्माण किया जाता था; ये प्रतिमाएं चलती-फिरतों और पलक मारती थीं। पादलिप्त आचार्य ने किसी राजा की बहन की प्रतिमा बनायी थी, जो भ्रमण करती थी, पलक मारती थी और हाथ में व्यजन लेकर आचार्यों के समक्ष उपस्थित हो जाती थो । यवन देश में भी कहते हैं कि आगन्तुकां का इसी प्रकार स्त्री बनाकर छोड़ दिया जाता था। यन्त्रमय हस्तियों का निर्माण किया जाता था । गन्धर्वकला में निष्णात उदयन का उल्लेख किया जा चुका है। उज्जैनी का राजा प्रद्योत राजकुमारी वासवदत्ता को गन्धवविद्या की शिक्षा देना चाहता था। उसने यन्त्र से चलने वाला एक हाथी बनवाया और उसे वत्सदेश के सीमाप्रान्त पर छोड़ दिया। उधर से उदयन गाता हुआ निकला और उसका गाना सुनकर हाथी वहीं रुक गया। प्रद्योत के आदमी उदयन को पकड़कर राजा के पास ले आये ।
(८) स्थापत्यकला गृहनिर्माण-विद्या ( वत्थुविज्जा ) का प्राचीन भारत में बहुत महत्त्व था । जैन आगमों में वास्तुपाठकों का उल्लेख मिलता है जो नगरनिर्माण के लिए इधर-उधर स्थान की खोज में भ्रमण किया करते थे। थे । बढ़ई (वढई ) का स्थान समाज में महत्वपूर्ण समझा जाता था, और उसकी गणना चौदह रत्नों में की जाती थी।" गृह-निर्माण करने के पूर्व सबसे पहले भूमि की परीक्षा की जाती थी। फिर, भूमि को इकसार किया जाता, और फिर जो भूमि जिसके योग्य हो, उसे देने के लिए अक्षर से अंकित मोहर ( उंडिया ) डाली जाती थी। तत्पश्चात् भूमि को खोदा जाता, और ईंटों को मूंगरी से कूटकर, उनके ऊपर इंटें चिनकर नोंव रक्खी जाती । उसके बाद पीठिका तैयार हो जाने
१. ज्ञातृधर्मकथा ८, पृ० ९५ । २. बृहत्कल्पभाष्य ४.४९१५ । ३. आवश्यकचूर्णी २, पृ० १६१ । ४. वही पृ० १७७ ।
५. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र ३.५५, पृ० २२९ । तथा देखिए रामायण २.८०.१ आदि।