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________________ ३२४ जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज [च० खण्ड भी ), सागरतरंग, वसंतलता और पद्मलता ( नाटयशास्त्र में भी) के चित्रों का अभिनय । (३) ईहामृग, वृषभ, नरतुरग, मगर (नाटयशास्त्र में भी ), विहग, व्याल, किंनर, रुरु, शरभ, चमर, कुंजर (नाटयशास्त्र में गजदत), वनलता और पद्मलता के चित्रों का अभिनय ।। (४) एकतो वक्र,' द्विधा वक्र, एकतश्चक्रवाल, द्विधा चक्रवाल, चक्रार्ध चक्रवाल के चित्रों का प्रदर्शन । (५) चन्द्रालिका -प्रविभक्ति, सूर्यावलिका-प्रविभिक्त, वलयावलिका-प्रविभक्ति, हंसावलिका-प्रविभक्ति (नाट्यशास्त्र में हंसवक्त्र और हंसपक्ष ), एकालिका-प्रविभक्ति, तारावलिका-विभक्ति, मुक्तावलिका-प्रविभक्ति, कनकावलिका-प्रविभक्ति और रत्नावलिका-प्रविभक्ति का प्रदर्शन। (६) चन्द्रोद्गम और सूर्योद्गम दर्शन का अभिनय । (७) चन्द्रागम और सूर्यागमदर्शन का अभिनय । (८) चन्द्रावरण और सूर्यावरण के दर्शन का अभिनय । (९) चन्द्रास्त और सूर्यास्तदर्शन का अभिनय । (१०) चन्द्रमंडल-प्रविभक्ति, सूर्यमंडल-प्रविभक्ति, नागमंडलप्रविभक्ति, .यक्षमंडल-प्रविभक्ति, भूतमंडल-प्रविभक्ति, राक्षसमंडलप्रविभक्ति, महोरगमंडल-प्रविभक्ति और गंधर्वमंडल-विभक्ति ( नाट्यशास्त्र में मंडल में २० प्रकार बताये हैं ) के अभिनय का प्रदर्शन ।। (११) ऋषभमंडल-प्रविभक्ति, सिंहमंडल-प्रविभक्ति, हयविलंबितप्रविभक्ति, गजविलंबित-प्रविक्ति, हयविलसित-प्रविभक्ति, गजविलसितप्रविभक्ति, मत्तहय-प्रविभक्ति, मत्तगज-प्रविभक्ति, मत्तहयविलंबित-प्रविभक्ति, मत्तगजविलंबित-प्रविभक्ति और द्रविलंबित के अभिनय का प्रदशेन। (१२) सागर-प्रविभक्ति और नागर-प्रविभक्ति के अभिनय का प्रदर्शन। १. एकतो वक्त्रं-नटानां एकस्यां दिशि धनुराकारश्रेण्या नर्तनं । द्विधातो वक्र-द्वयोः परस्पराभिमुखदिशोः धनुराकारश्रेण्या नर्तनं । एकतश्चक्रवालएकस्यां दिशि नटानां मण्डलाकारेण नर्तनं, वही। २. चन्द्राणां आवलिः श्रेणिः तस्याः प्रविभक्तिः-विच्छित्तिरचनाविशेषस्तदभिनयात्मकं, वही।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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