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________________ च० खण्ड ] पांचवाँ अध्याय : कला और विज्ञान ३२३ नाट्य के अंचिय (अंचित), रिभिय (रिभित), आरभड (आरभट ) और भसोल ये चार प्रकार बताये हैं। नाट्यविधि में अभिनय का होना आवश्यक है, इसलिए दितृतिय (दान्तिक ), पांडुसुत, सामंतोवायणिय (सामंतोपपातनिक) और लोगमज्झावसित (लोकमध्यावसित) नाम के चार अभिनयों का उल्लेख जैनसूत्रों में किया है।' इनमें से एक अथवा एकाधिक अभिनय द्वारा अभिनेतव्य वस्तु के भावों को प्रकट किया जाता था। कभी अभिनयशून्य नाटक भी दिखाये जाते थे। उदाहरण के लिए उत्पात (आकाश में उछलना), निपात, संकुचित ,प्रसारित, भ्रान्त, संभ्रान्त आदि नाटकों के नाम लिये जा सकते हैं। बत्तीस प्रकार की नाट्यविधि राजप्रश्नीयसूत्र में निम्नलिखित बत्तीस प्रकार की नाटयविधि का उल्लेख मिलता है: (१) स्वस्तिक (भरत के नाट्यशास्त्र में उल्लिखित ), श्रीवत्स, मंद्यावत, वर्धमानक (नाट्यशाम में भी), भद्रासन, कलश, मत्स्य और दर्पण के प्रतीकों का प्रतिनिधित्व करने वाले दिव्य अभिनय । प्रस्तुत अभिनय में, भरत के नाट्यशास्त्र में उल्लिखित आंगिक अभिनय द्वारा नाटक करने वाले, स्वस्तिक आदि आठ मंगलों का आकार बनाकर खड़े हो जाते हैं, और फिर हस्त आदि द्वारा उस आकार का प्रदर्शन करते है। ये लोग वाचिक अभिनय के द्वारा उस मंगल शब्द का उच्चारण करते हैं जिससे कि दर्शकों के मन में उस मंगल के प्रति रति का भाव उत्पन्न होता है। (२) आवर्त, प्रत्यावर्त, श्रेणी, प्रश्रेणी, स्वस्तिक, सौवस्तिक. पस (पुष्य ), माणवक, वर्धमानक (कंधे पर बैठे हुए पुरुष का अभिनय ), मत्स्यंड, मकरंड, जार, भार, पुष्पावलि, पद्मपत्र ( नाट्यशास्त्र में १. स्थानांग ४, पृ० २७१-अ । भरत के नाट्यशास्त्र में आंगिक, वाचिक, आहार्य और. सात्त्विक अभिनयों का उल्लेख है। २. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिटीका ५, पृ० ४१८ ।। ३. नाट्यविधि नामक प्राभूत में इन विधियों के स्वरूप का प्रतिपादन किया गया है, किंतु वह आजकल उपलब्ध नहीं है, राजप्रश्नीयटीका, पृ० १३६ । ४. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिटीका ५, पृ० ४१४ । . ५. भ्रमभ्रमरिकादाननत्तनम् आवर्तः, तद्विपरीतः प्रत्यावर्तः, वही ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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