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च० खण्ड] पांचवाँ अध्याय : कला और विज्ञान
३१९ राजकुमारों के लिए धनुर्वेद की शिक्षा प्राप्त करना आवश्यक था । अनेक राजा और राजपुत्र इस विद्या में निष्णात थे। राजा चेटक का उल्लेख किया जा चुका है । एक दिन में एक ही बाण छोड़ने का उसका प्रण था, लेकिन उसका वह बाण अमोघ होता था। चेटक ने अपने एक-एक बाण से काल, सुकाल आदि दस राजकुमारों को मौत के घाट उतार दिया था । जराकुमार एक दूसरे धनुर्धर थे जिन्होंने अपने बाण से कृष्णवासुदेव का वध किया था ।' राजकुमार अगडदत्त भी इस विद्या में निपुण थे। राजकुमार सुरेन्द्रदत्त ने अपने बाण से पुत्तलिका की आँख बींधकर स्वयंवर में राजकुमारी को प्राप्त किया था, इसका उल्लेख हो चुका है । एक गड़रिया अपनी धनुहिया से वट वृक्ष के पत्तों में छेद किया करता था, यह बात भी पहले आ चुकी है। कोई जैन श्रमण भी धनुर्विद्या में निष्णात ( कृतकरण ) होते थे और वे संकट के समय, शत्र से युद्ध कर जैन संघ की रक्षा करते थे।२।।
महापुरुषबाण, महारुधिरबाण, नागबाण और तामसबाण आदि बाणों की चर्चा की जा चुकी है । शब्दवेधी बाण उल्लेख मिलता है।'
(५) संगीत और नृत्य प्राचीन भारत में संगीतविद्या का बहुत मान था। राजा-महाराजा और अभिजात-वर्ग के लोग ही नहीं, बल्कि साधारण लोग भी गाने, बजाने और नृत्य के शौकीन थे। बहत्तर कलाओं का उल्लेख किया जा चुका है। इनमें नृत्य, गीत, स्वरगत, वादित्र, पुष्करगत और समताल के नाम आते हैं । इसका तात्पर्य यही है कि प्राचीन भारत में संगीत और नृत्य का प्रचार था।
उत्सवों और त्यौहारों के अवसर पर प्रायः स्त्री और पुरुष नाचगाकर अपना मनोविनोद करते थे। वाराणसी में मदन महोत्सव खूब ठाठ से मनाया जाता था। लोग अपनी-अपनी टोलियां बनाकर गाते, नाचते और आनन्द मनाते। चित्र और संभूत नाम के दो मातंग
१. वही, १, पृ० ४० । २. बृहत्कल्पभाष्य १.३०१४ ।
३. ज्ञातृधर्मकथा १८, पृ० २०८; तुलना कीजिए सरभंग जातक (५२२ ), ५, पृ० २११।
४. भारतीय संगीत के लिए देखिए कुमारस्वामी, द डान्स ऑव शिव, पृ० ७२-८१।