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________________ ३२० जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज [च० खण्ड दारक तिसरय, वेणु और वीणा बजाते हुए, अपनो टोली के साथ गंधर्व गाते हुए नगर में से गुजरे जिससे सब लोग मुग्ध हो गये। कौमुदी महोत्सव पर भी लोग गाते-बजाते और नृत्य करते थे ।' इन्द्र महोत्सव खूब ठाट-बाट से मनाया जाता था। इस अवसर पर नर्तिकाओं के सुन्दर नृत्य होते, सुकवियों द्वारा रचित काव्यों का पाठ किया जाता, और सर्वसाधारण नृत्य और गान में मस्त होकर अपने को भूल जाते । राजा उदय बहुत बड़ा संगीतज्ञ माना जाता था, जो अपने मधुर संगीत द्वारा मत्त हाथी को भी वश में कर लेता था। उज्जैनी के राजा प्रद्योत ने उसे राजकुमारी वासवदत्ता को संगीत को शिक्षा देने के लिए नियुक्त किया था। वासवदत्ता पर्दे के पीछे बैठकर संगीत सीखने लगी, लेकिन एक दिन दोनों की आंखें चार हुई और उदयन वासवदत्ता को अपने साथ कौशाम्बी ले गया । सिन्धु-सौवीर के राजा उद्रायण भी एक अच्छे संगीतज्ञ थे । वे स्वयं वीणा बजाते और उनकी रानी नृत्य करतो। सरसों की राशि पर नृत्य करने का उल्लेख मिलता है।" वाद्य, नाट्य, गेय और अभिनय के भेद से संगीत चार प्रकार का बताया गया है। इसमें वीणा, तल, ताललय, और वादित्र को मुख्य स्थान दिया है। स्थानांगसूत्र में सात स्वरों का उल्लेख है। जैन परम्परा के अनुसार, सात स्वरों और ग्यारह अलंकारों का वर्णन चतुर्दश पूर्वो के अन्तगत स्वरप्राभृत नामक ग्रन्थ में किया गया था। दुर्भाग्य से यह ग्रन्थ आजकल उपलब्ध नहीं है । वर्तमान में इस विषय का अध्ययन भरत और विशाखिल आदि ग्रन्थों से किया जा सकता है, जो ग्रन्थ पूर्वो के आधार से ही लिखे हुए बताये गये हैं।" १. उत्तराध्ययनटीका १३, पृ० १८५-अ । २. वही ९, पृ० १३६ । ३. आवश्यकचूर्णी २, पृ० १६१ । ४. उत्तराध्ययनटीका १८, पृ० २५३ । ५. आवश्यकचूर्णी पृ० ५५५ । ६. स्थानांग ४.३७४, पृ० २७१ । ७. वही ७, पृ० ३७२ आदि; अनुयोग द्वार पृ० ११७ अ आदि ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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