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________________ पहला अध्याय : जैन संघ का इतिहास के कारण मंखलिपुत्र गोशाल नाम से कहा जाने लगा। .. ___ एक बार महावीर नालंदा में जुलाहों की तंतुशाला में ठहरे हुए थे। गोशाल उनसे मिला और दोनों साथ-साथ विहार करने लगे। एक बार दोनों सिद्धार्थग्राम से कूर्मग्राम जा रहे थे। मार्ग में एक तिल के पौधे को देखकर गोशाल ने महावीर से प्रश्न किया कि क्या वह पौधा नष्ट हो जायेगा ? महावीर ने उत्तर दिया-नहीं। यह सुनकर इस कथन की परीक्षा के लिए गोशाल ने पौधे को तोड़कर फेंक दिया। लेकिन कूर्मग्राम से सिद्धार्थपुर लौटते समय गोशाल ने पौधे की ओर लक्ष्य किया तो वह हरा-भरा हो गया था। इसपर से गोशाल ने निर्णय किया कि मनुष्य का बल-पराक्रम तथा बुद्धि और कर्म सब निष्फल हैं, तथा समस्त सत्व, प्राणी, भूत और जीव नियति के वश होकर प्रवृत्ति करते हैं। गोशाल का यह नियतिवाद का सिद्धान्त था। २४ वर्ष की कठिन साधना के पश्चात् गोशाल को ज्ञान को प्राप्ति हुई। उसने महावीर का संग छोड़ दिया और अपना अलग संघ स्थापित कर अपने शिष्य समुदाय के साथ विहार करने लगा। . ____एक बार की बात है, गोशाल श्रावस्ती में आजीविक धर्म की परम उपासिका हालाहला नाम की कुम्हारी की कुंभकार-शाला में ठहरा हुआ था। उस समय उसके पास शान, कलंद, कर्णिकार, अछिद्र, अग्निवेश्यायन और गोमायुपुत्र अर्जुन नाम के छः दिशाचर' आये, उनके गाथा पढ़ते हैं, केवल अपनी वाणी से ही कुछ कहते हैं. (४) चित्रपट दिखाते हैं और साथ में गाथाएँ पढ़ते हुए उनका अर्थ भी समझाते जाते हैं, बृहत्कत्पभाष्य पीठिका २००; आवश्यकचूर्णी पृ. ६२,२८२ । . १. अंगुत्तरनिकाय १, १, पृ. ३४ में गोशाल को 'मोघपुरुष' कहा है। बौद्ध टीकाकार बुद्धघोष ने मक्खलि शब्द की बड़ी विचित्र व्युत्पत्ति दी है। गोशाल किसी सेठ के घर नौकरी करता था। एक बार वह तेल का बर्तन लिए आ रहा था। सेठ ने उसे पहले ही सावधान कर दिया था कि गिरना मत ( मा खलि )। परन्तु मार्ग में कीचड़ थी, इसलिए वह रपट गया और तेल का बर्तन फूट जाने से डर के मारे भाग गया। सेठ ने भागते हुए का वस्त्र पकड़ लिया, लेकिन वह वस्त्र छोड़ नग्न होकर भागा। २. टीकाकार अभयदेव ने दिशाचर का अर्थ 'भगवच्छिष्याः पार्श्वस्थी
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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