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________________ जैन श्रागम साहित्य में भारतीय समाज ज्ञान की प्राप्ति हुई। अब वे जिन, अर्हत् और तीर्थंकर कहे जाने लगे। अस्थिकग्राम, चम्पा, -पृष्ठचम्फा, वैशालो, वाणियग्राम, नालन्दा, मिथिला, आलंभिया, श्रावस्ती, पणियभूमि और मज्झिमपावा आदि में चातुमास व्यतीत करते हुए ३० वर्ष तक वे विहार करते रहे। इस दोर्घ काल में जन-सामान्य की भाषा अर्धमागधी में उपदेश देकर जन-समुदाय का उन्होंने कल्याण किया। अन्तिम चातुर्मास व्यतीत करने के लिए वे मज्झिमपावा (पावापुरी) में हस्तिपाल नामक गणराजा के पटवारी के दफ्तर ( रज्जुगसभा) में ठहरे। एक-एक करके वर्षा ऋतु के तीन महीने बीत गये। तत्पश्चात् कार्तिकी अमावस के प्रातःकाल, ७२ वर्ष की अवस्था में ( ई० पू० ५२७ के लगभग ) उन्होंने निर्वाण लाभ किया। इस समय काशी-कोशल के नौ मल्लकि और नौ लिच्छवी गणराजा, मौजूद थे, उन्होंने सर्वत्र दीप जलाकर महान् उत्सव मनाया। महावीर और मंखलिपुत्र गोशाल : मंखलिपुत्र गोशाल आजीविक मत के २४ वें तीर्थकर हो गये हैं जिनकी गणना बौद्ध ग्रंथों में पूरणकस्सप, अजितकेसकंबली, पकुधकच्चायन, संजयबेलट्टिपुत्त तथा निगंठनाटपुत्त ( महावीर ) नाम के संघाधिपति, गणाधिपति और जनसम्मत यशस्वी तीर्थकरों में की गयी है। ___गोशाल के पिता का नाम मंखलि और माता का नाम भद्रा था। मंखविद्या (चित्रपट विद्या) में वे निपुण थे, और चित्रपट दिखाकर अपनी आजीविका चलाते थे (मंखः केदारिको यः पटमुपदर्य लोकम् आवर्जयति ), इसलिए मंखलि कहे जाते थे। गोशाला में जन्म लेने १. श्राचारांग ( २, चूलिका ३, ३६८-४०२); कल्पसूत्र ५. ११२१२८; आवश्यकनियुक्ति ४६२-५२७; आवश्यकचूर्णी पृ० २३६-३२३ । निगण्ठ नाटपुत्त के पावा में कालगत होने और उनके अनुयायियों में कलह होने के उल्लेख के लिये देखिये दीघनिकाय ३, ६, पृ० ६१ । २. दीघनिकाय, सामञफलसुत्त, पृ. ४१-४२। ३. मंख चार प्रकार के बताये गये हैं--(१) कुछ लोग केवल चित्रपट दिखाकर भिक्षा माँगते हैं, अपनी वाणी से वे कुछ भी नहीं कहते, (२) चित्रपट नहीं दिखाते, केवल गाथा ही पढ़ते हैं, (३) न चित्रपट दिखाते हैं, न
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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