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पहला अध्याय : जैन संघ का इतिहास
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सूत्रों में महावीर को धर्मतीर्थंकर, जिन, सर्व लोक में विश्रुत और लोकप्रदीप कहा है । "
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महावीर ३० वर्ष की अवस्था तक गृहवास में रहे, और माता-पिता के कालगत हो जाने पर अपने बड़े भाई नंदिवर्धन को अनुज्ञा ले, ज्ञातृखण्ड नामक उद्यान में अगहन बदी १० के दिन उन्होंने श्रमणदीक्षा स्वीकार की । एक वर्ष से कुछ अधिक समय तक वे सचेल रहे, उसके बाद अचेल (नग्न) विहार करने लगे । बारह वर्ष तक उन्होंने घोर तप किया और इस बीच में उन्हें भयंकर उपसर्ग सहने पड़े । सबसे अधिक कष्ट लाढ़ (राढ, पश्चिमी बंगाल ) देश में हुआ । इस देश की गणना अनार्यं देशों में की जाती थी । रूक्ष भोजन करने के कारण यहाँ के निवासी स्वभाव से बड़े क्रोधी थे । महावीर पर वे कुत्तोंको छोड़ते और दंड आदि से उनपर प्रहार करते । महावीर जब किसी गांव में पहुँचते तो लोग उन्हें निकाल बाहर करते, उनके शरीर में से मांस नोच लेते, उन्हें ऊपर उछाल कर नीचे गिरा देते, उन्हें गुप्तचर या चोर समझकर पकड़ लेते और रस्सी से बांधकर गड्ढे में लटका देते । इन उपसर्गों को सहन करने के कारण महावीर को 'हस्तियों में ऐरावण', 'मृगों में सिंह', 'नदियों में गंगा' और 'पक्षियों में गरुड़ कहकर सर्व श्रेष्ठ कहा गया है । 3
तपस्वी जीवन में श्रमण भगवान् महावीर ने बिहार में राजगृह, चम्पा, भद्दिया (मुंगेर), वैशाली, मिथिला आदि प्रदेशों में; पूर्वीय उत्तरप्रदेश में बनारस, कौशाम्बी, अयोध्या, श्रावस्ती आदि स्थलों में; तथा पश्चिमी बंगाल में लाढ़ आदि स्थानों में भ्रमण किया। इस समय मंखलिपुत्र गोशाल भी कुछ समय तक उनके साथ रहे । तत्पश्चात् जंभियग्राम के बाहर ऋजुवालिका नदी के किनारे, श्यामाक गृहपति के खेत में, शाल वृक्ष के नीचे, वैशाख सुदी १० के दिन उन्हें केवल -
१. उत्तराध्ययन सूत्र २३.५.६ । बुद्ध को अरहत्, सम्यक् सम्बुद्ध, विद्याचरणसम्पन्न, सुगत, लोकविद्, अनुत्तर, शास्ता श्रादि विशेषणों से सम्बोधित किया है, महावग्ग १.१६.५५, पृ० ३५ ।
२. दिगम्बर सम्प्रदाय के अनुसार महावीर की दीक्षा के समय उनके माता-पिता मौजूद थे ।
३. सूत्रकृतांग, वीरस्तुति अध्ययन ।