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च० खण्ड] पांचवाँ अध्याय : कला और विज्ञान
३१७ नहीं, लेकिन मालूम होता है कि यह किसी अदृश्य शल्य से पीड़ित है। वैद्य ने घोड़े के शरीर पर कर्दम का लेप कराया। शल्य का स्थान जल्दी ही सूख गया । उसके बाद वैद्य ने शल्य को निकाल दिया।' किसी राजा की महादेवी को ककड़ियां खाने का शौक था। एक दिन नौकर बड़े आकार की ककड़ी लाया। रानी ने उसे अपने गुह्य प्रदेश में डाल लिया। ककड़ी का कांटा रानी के गुह्य प्रदेश में चुभ गया, और उसका जहर फैल गया। वैद्य को बुलाया गया। उसने गेहूँ के आटे (समिया = कणिक्का ) का लेप कर दिया। काँटेवाले प्रदेश के सूख जाने पर वहां निशान बना दिया। तत्पश्चात् शस्त्रक्रिया द्वारा उसे फोड़ दिया। पीप निकलने के साथ ही कांटा भी बाहर निकल आया।
क्षिप्तचित्तता भूत आदि द्वारा क्षिप्तचित्त हो जाने पर भी चिकित्सा की जाती थी। ऐसी दशा में कोमल बंधन से रोगी को बांधकर, जहां कोई शस्त्र आदि न हो, ऐसे स्थान में रख देने का विधान है। यदि कदाचित् ऐसा स्थान न मिले, तो रोगी को पहले से खुदे हुए कुएँ में डाल दे, अथवा नया कुआं खुदवाकर उसमें रख दे और कुएँ को ऊपर से ढंकवा दे जिससे रोगी बाहर निकलकर न जा सके। यदि वात आदि के कारण धातुओं का क्षोभ होने से क्षिप्तचित्तता उत्पन्न हो गयी हो तो रोगी को स्निग्ध और मधुर भोजन दे, और उपलों की राख पर सुलाये । यदि कोई साधु क्षिप्तचित्त होकर भाग जाये तो उसकी खोज की जाये, तथा यदि वह राजा आदि का सगा-सम्बन्धी हो तो राजा से निवेदन किया जाये। साध्वी के यक्षाविष्ट होने पर भी भूतचिकित्सा का विधान जैन आगमों में मिलता है।
छोटे-मोटे रोगों का इलाज इसके अतिरिक्त, और भी छोटे-मोटे रोगों की चिकित्सा की जाती १. निशीथचूर्णी २०.६३९६ ।
२. बृहत्कल्पभाष्य १.१०५१ । शल्यचिकित्सा के लिये देखिये सुश्रुत, सूत्रस्थान, २६.१३, पृ० १६३ ।
३. व्यवहारभाष्य २.१२२-२५; निशीथभाष्यपीठिका १७३ ।
४. बृहत्कल्पभाष्य ६.६२६२ । तथा देखिये चरकसंहिता, शारीरस्थान २. अध्याय ९, पृ० १०८८ ।