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३१६ जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज [च० खण्ड मणिरथ नाम का राजा राज्य करता था; उसका सहोदर भाई युगबाहू युवराज पद पर आसीन था। युगबाहू की स्त्री मदनरेखा को लेकर दोनों में मन-मुटाव हो गया । एक दिन मणिरथ ने युगबाहू पर तलवार का वार किया जिससे वह घायल होकर पृथ्वी पर गिर पड़ा। उसके घावों की चिकित्सा करने के लिए वैद्य बुलाये गये।'
विविध घृत और तेल घावों को भरने के लिए वैद्य अनेक प्रकार के घृत और तेलों का उपयोग करते थे। कल्याणघृत बहुत तिक्त होता था। शतपाक और सहस्रपाक तेल सौ या हजार औषधियों को एक साथ पकाकर बनाया जाता, अथवा एक हो औषधि को सौ या हजार बार पकाया जाता। हंसतेल भी घाव के लिए बहुत उपयोगी था। मरुतेल मरुदेश के पवत से मंगाया जाता। ये सब तेल थकावट दूर करने, वात रोग शान्त करने, खुजली ( कच्छू) मिटाने और घावों के भरने के उपयोग में आते थे।
शल्यचिकित्सा शल्यचिकित्सा का बहुत महत्व था। नन्दिपुर में सोरियदत्त नाम का एक राजा रहता था । एक बार, मछली भक्षण करते समय उसके गले में मछली का कांटा अटक गया। उसने घोषणा करायी कि जो वैद्य या वैद्यपुत्र कांटे को निकाल देगा उसका विपुल धन आदि से सत्कार किया जायेगा । घोषणा सुनकर बहुत से वैद्य उपस्थित हुए और उन्होंने वमन, छदैन, अवपीड़न, कवलग्राह (स्थूल ग्रास भक्षण ), शल्योद्धरण, और विशल्यकरण द्वारा कांटे को निकालने का प्रयत्न किया, लेकिन सफलता न मिली। पैर में कांटा चुभ जाने पर उसकी चिकित्सा की जाती थी। किसी राजा के सवेलक्षण-युक्त एक घोड़ा था । कंटक से विद्ध होने के कारण उसे बहुत कष्ट होता था। राजा ने वैद्य को बुलाया । परीक्षा करने के बाद वैद्य ने कहा कि इसे कोई रोग
१. उत्तराध्ययनटीका ९, पृ० १३७ । २. कल्लाणघयं तित्तगं महातित्तगं, निशीथचूर्णी ४.१५६६ ।
३. बृहत्कल्पभाष्य ५.६०२८-३१; १.२९९५ की वृत्ति; निशीथचूर्णीपीठिका ३४८; १०.३१९७ ।
४. विपाकसूत्र ८, पृ० ४८ । ५. आवश्यकचूर्णी पृ० ४६१ ।