SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 333
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३१२ __ जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज [च० खण्ड और उसका वैद्यकशास्त्र नष्ट हो गया है । राजा ने अपने कर्मचारियों से कहा कि यदि उसका वैद्यकशास्त्र नष्ट हो गया है तो उसके शस्त्रकोश की परीक्षा की जाये। पता लगाने पर मालूम हुआ कि उसके औजारों को जर लग गया है। यह देखकर राजा ने उसकी आजीविका बन्द कर दी। __किसी राजा के वैद्य को मृत्यु हो गयी । उसके एक पुत्र था । राजा ने उसे पढ़ने के लिए बाहर भेज दिया । एक बार, बाड़े में चरते समय, एक बकरी के गले में ककड़ी अटक गयी। बकरी वैद्य के पास लायी गयो । वैद्य ने प्रश्न किया “यह कहाँ चर रही थी ?" उत्तर मिला-"वाड़े में (पुरोहडे )।" वैद्य समझ गया कि उसके गले में ककड़ी अटक गयी है। उसने बकरी के गले में एक कपड़ा बांधकर उसे इस तरह मरोड़ा कि ककड़ी टूट गयी। वद्य का पुत्र पढ़-लिखकर राज-दरबार में लौटा। राजा ने समझा कि मेधावी होने के कारण वह बहुत जल्दी विद्या सोखकर लौट आया है, इसलिए उसका आदर-सत्कार किया, और उसे अपने पास रख लिया । एक बार को बात है, रानी को गलगंड हो गया । वैद्यपुत्र ने वहो प्रश्न किया जो उसके गुरुजी ने किया था । वही उत्तर मिला । वैद्यपुत्र ने रानी के गले में वस्त्र लपेटकर उसे ऐसा मरोड़ा कि वह मर गयी । यह देखकर राजा को बहुत क्रोध आया; उसने वैद्यपुत्र को दंडित किया। किसी राजा को अक्षिरोग हो गया। उसने वैद्य को दिखाया। वैद्य ने उसे आँख में आँजने को गोलियाँ दीं। लेकिन गोलियों को आँख में लगाते समय तीव्र वेदना होती थी। वैद्य ने पहले ही राजा से वचन ले लिया कि वेदना होने पर भी वह उसे दण्ड न देगा। व्याधियों का उपचार व्याधियों को शान्त करने के लिए वैद्य अनेक उपचार किया करते थे । भगंदर एक भयंकर व्याधि गिनी जाती थी। भगंदर का उपशमन करने के लिए उसमें से कीड़ों को निकालना पड़ता था। इसके लिए त्रण के अंदर मांस डाला जाता जिससे कि कीड़े उस पर चिपट जायें । यदि मांस न हो तो गेहूँ के गीले आटे (समिया) में मधु और घी १. व्यवहारभाष्य ५.२१ । २. बृहत्कल्पभाष्यपीठिका ३७६ । ३. वही, १.१२७७ ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy