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________________ च० खण्ड ] पांचवाँ अध्याय : कला और विज्ञान ३११ कहा है कि पुरीष के रोकने से मरण, मूत्र के निरोध से दृष्टिहानि और वमन के निरोध से कुष्ठरोग की उत्पत्ति होती है।' वैद्यों द्वारा चिकित्सा अनेक वैद्यों के उल्लेख मिलते हैं जो अपनी औषधियों आदि द्वारा रोगियों को चिकित्सा करते थे। विजयनगर में धन्वन्तरी नाम का एक वैद्य रहता था जो आयुर्वेद के आठ अंगों में कुशल था, तथा राजा, ईश्वर, सार्थवाह, दुर्बल, म्लान, रोगी, अनाथ, श्रमण, ब्राह्मण, भिक्षुक, कापोटिक आदि को मत्स्य, कच्छप, ग्राह, मगर, संसुमार, बकरी, मेंढ़ा, सूअर, मृग, खरगोश, गाय, भैस, तीतर, बतक, कबूतर, कुक्कुट, मयूर आदि के मांस भक्षण का निर्देशन कर उनकी चिकित्सा करता था। द्वारकावासी कृष्ण वासुदेव के धन्वन्तरी और वैतरणी नाम के दो सुप्रसिद्ध वैद्य थे। विजयवर्धमान नामक खेड़ का निवासी इक्काई नामक राष्ट्रकूट पांच सौ गांवों का मालिक था। जब वह अनेक रोगों से पीड़ित हुआ तो उसने सब जगह घोषणा करा दी कि जो वैद्य (शास्त्र और चिकित्सा दोनों में कुशल ), वैद्यपुत्र, ज्ञायक ( केवल शास्त्र में कुशल ), ज्ञायकपुत्र, चिकित्सक (केवल चिकित्सा में कुशल ), और चिकित्सकपुत्र उसके रोग को दूर करेगा, उसका विपुल धन से सत्कार किया जायगा।' राजवैद्य राजवैद्यों को आजिविका का प्रबन्ध राज्य की ओर से होता था। लेकिन यदि कोई राजवैद्य अपना कार्य ठीक से न करता तो उसकी आजीविका बन्द कर दी जाती थी। एक बार की बात है, किसी राजवैद्य को जूआ खेलने की लत पड़ गयी। उसके वैद्यकशास्र और शस्त्रकोश दोनों ही नष्ट हो गये, अतएव रोग का उपचार बताने में वह असमर्थ रहा । पूछने पर उसने कह दिया कि उसकी पुस्तकें चोरी चली गयी हैं १. बृहत्कल्पभाष्य ३.४३८० । २. विपाकसूत्र ७, पृ० ४१ । ३. आवश्यकचूर्णी पृ० ४६० । ४. विपाकसूत्र १, पृ० ७ । तथा आवश्यकचूर्णी २. पृ० ६७ । सुश्रत (१.४. ४७-५०; में तीन प्रकार के वैद्यों का उल्लेख है :-केवल शास्त्र में कुशल, केवल चिकित्सा में कुशल, तथा शास्त्र और चिकित्सा दोनों में कुशल ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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