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जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज [च० खण्ड ( पंगुत्व ), सिलीवय (इलीपद = फीलपांव का रोग), और मधुमेह ।'
रोग, व्याधि और आतंक में अन्तर बताया गया है। रोग से मनुष्य देर में मृत्यु को प्राप्त होता है, किन्तु व्याधि से उसका शीघ्र मरण हो जाता है। निम्नलिखित सोलह प्रकार की व्याधियों का उल्लेख किया गया है :-श्वास, कास, ( खांसी ), ज्वर, दाह, कुक्षिशूल, भगन्दर, अर्श, अजीर्ण, दृष्टिशूल, मूर्धशूल, अरोचक ( भोजन में अरुचि ), अक्षिवेदना, कर्णवेदना, कण्डू ( खुजली), जलोदर और कुष्ठ (कोढ़)। ____ अन्य रोगों में दुब्भूय ( दुर्भूत = ईति; टिड्डी दल द्वारा धान्य को हानि पहँचाना), कुलरोग, ग्रामरोग, नगररोग, मंडलरोग, शीषेवेदना,
ओष्ठवेदना, नखवेदना, दंतवेदना, शोष (क्षय ), कच्छू, खसर (खसरा), पांडुरोग, एक-दो-तीन-चार दिन के अन्तराल से आने वाला ज्वर, इन्द्रग्रह, धनुग्रंह, स्कन्दग्रह, कुमारग्रह, यक्षग्रह, भूतग्रह, उद्वेग, हृदयशूल, उदरशूल, योनिशूल, और महामारी वल्गुलो' (जी मचलाना ), विषकुंभ (फुडिया ) का उल्लेख है।
रोगोत्पत्ति के कारण रोगोत्पत्ति के नौ कारण बताये हैं :-अत्यन्त भोजन, अहितकर भोजन, अतिनिद्रा, अति जागरण, पुरीष और मूत्र का निरोध, मार्गगमन, भोजन की अनियमितता और कामविकार । जैन आगमों में
१. ६.१.१७३; विपाकसूत्र १; पृ० ७; निशीथभाष्य ११.३६४६; उत्तराध्ययनसूत्र १०.२७ । मुत्त सक्कर के उल्लेख के लिये देखिये निशीथभाष्य १.५९९।
२. विपाकसूत्र, वही; ज्ञातृधर्मकथा १३, पृ० १४४; निशीथभाष्य ११.३६४७ ।
३. धनुर्ग्रहोऽपि वातविशेषो यः शरीरं कुब्जीकरोति, बृहत्कल्पभाष्यवृत्ति ३.३८१६ ।
४. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति २४, पृ० १२०; जीवाभिगम ३, पृ० १५३; व्याख्याप्रज्ञप्ति ३.६, पृ० ३५३ ।
५. बृहत्कल्पभाष्य ५.५८७० । ६. वही ३.३९०७ ।
७. स्थानांग ९.६६७ । तुलना कीजिए मिलिन्दप्रश्न, पृ० १३५; यहां रोग के दस कारण बताये हैं।