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च० खण्ड] पांचवाँ अध्याय : कला और विज्ञान
३०९ लोहे को शलका आदि से दागना), अवस्नान (औषधियों के जल से स्नान करना), अनुवासना (यन्त्र द्वारा तेल आदि को अपान द्वारा पेट मे चढ़ाना ), बस्तिकर्म (चर्म वेष्टन द्वारा सिर आदि में तेल लगाना, अथवा गुदाभाग में बत्ती आदि चढ़ाना ), निरूह ( अनुवासना, एक प्रकार का विरेचन ), शिरावेध (नाड़ी बेधकर रक्त निकालना), तक्षण (छुरे
आदि से त्वचा काटना), प्रतक्षण (त्वचा का थोड़ा-सा भाग काटना), शिरोबस्ति ( सिर में चर्मकोश बांधकर उसमें संस्कृत तेल का पूरना), तर्पण ( शरीर में तेल लगाना ), पुटपाक (पाकविशेष से तैयार को हुई औषधि ), तथा छाल, वल्ली (गुंजा आदि ), मूल, कंद पत्र, पुष्प, फल, बोज, शिलिका (चिरायता आदि कड़वी औषध), गुटिका, औषध' और भैषज्य से रोगो का उपचार करते थे।
रोगों के प्रकार आचारांग सूत्र में १६ रोगों का उल्लेख है :--गंडी (गंडमाला, जिसमें ग्रीवा फूल जाती है ), कुष्ठ' (कोढ़), राजयक्ष्मा, अपस्मार, काणिय (काण्य, अक्षिरोग), झिमिय (जड़ता), कुणिय (हीनांगत्व), खुजिय (कुबड़ापन ), उदररोग, मूकपना, सूणीय (शरीर का सूज जाना ) गिलासणि ( भस्मक रोग), वेवइ ( कम्पन ), पीढसप्पि
१. विपाकसूत्र १, पृ० ८। निशोथचूर्णी ११.३४३६ में प्रतक्षणशस्त्र, अंगुलिशस्त्र, शिरावेधशस्त्र, कल्पनशस्त्र, लौहकटिका, संडसी, अनुवेधशलाका, व्रीहिमुख और सूचीमुख शस्त्रों का उल्लेख है।
२. कुष्ठ १८ प्रकार का बताया है। इनमें ७ महाकुष्ठ और ११ क्षुद्रकुष्ठ होते हैं। महाकुष्ठ समस्त धातुओं में प्रवेश करने के कारण असाध्य माना जाता है । इसके सात प्रकार :-अरुण, औदुंबर, निश्य ( ? सुश्रुत में ऋष्यजिह्व = हरिण की जोभ के समान खुरदुरा), कपाल, काकनाद (सुश्रुत में काकणक ), पौण्डरीक ( सुश्रुत में पुण्डरीक ) और दद्रु । ११ क्षुद्रकुष्ठों में स्थूलारुष्क, महाकुष्ठ, एककुष्ठ, चर्मदल, परिसर्प, विसर्प, सिध्म, विचर्चिका ( अथवा विपादिका ), किटिभ, पामा ( अतिदाह युक्त पामा को कच्छ कहते हैं ), और शतारुक (सुश्रुत में रकसा और चरक में शतारु)। देखिये सुश्रुत. संहिता, निदानस्थान, ५.४-५, पृ० ३४२; चरकसंहिता, २,७, पृ० १०४९ आदि ।
३. गृहकोकिला (छिपकली) के मूत्र से चक्षुओं की हानि बतायी है, ओघनियुक्तिभाष्य १८७, पृ० १२६ ।