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________________ च० खण्ड ] पांचवाँ अध्याय : कला और विज्ञान ३०७ व्याख्याप्रज्ञप्ति' और उतराध्ययन में संख्यान (गणित ) और जोइस (ज्योतिष) का उल्लेख है। इन दोनों को उपर्युक्त चतुर्दश विद्यास्थानों में गिना गया है। प्राचीन जैन और बौद्ध सूत्रों के अध्ययन से पता लगता है कि ज्योतिष ने काफो उन्नति की थी। इसे नक्षत्रविद्या भी कहा गया है। ज्योतिषविद्या के पंडित, आगामी घटनाओं के सम्बन्ध में भविष्यवाणी करते थे । महावीर ने गणित और ज्तोतिषविद्या आदि में कुशलता प्राप्त की थी। गणित को ७२ कलाओं में सम्मिलित किया गया है। कहा जाता है कि ऋषभदेव ने अपनी पुत्री सुन्दरी को इसकी शिक्षा दी थी। गणितानुयोग को चार अनुयोगों में गिना गया है, जिसमें सूर्यप्रज्ञप्ति और जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति का समावेश होता है। स्थानांगसूत्र में दस प्रकार के संख्यान (गणित ) का उल्लेख है :-परिकर्म, व्यवहार, रजू (ज्यामिति ), कलासवण्ण ( कलासवर्ण), जावं तावं, वर्ग, घन, वर्गावर्ग, और विकल्प। (३) आयुर्वेद आयुर्वेद को जीवन का विज्ञान और कला कहा गया है। इसमें जीवन को दार्शनिक और जीव-वैज्ञानिक समस्त दशाओं का समावेश होता है, और इसमें रोधक तथा रोगनाशक औषधि और शल्यक्रिया सम्मिलित किये जाते हैं । आयुर्वेद प्राचीन भारत की एक स्वास्थ्यदायक १. २. १, पृ० ११२ । २. २५. ७, ३६ । ३. दशवैकालिक ८. ५१ । ४. कल्पसूत्र १. १०। ५. आवश्यकचूर्णी, पृ० १५६ । ६. दशवैकालिकचूर्णी, पृ० २। ७. १०. ७४७ । तथा देखिए विभूतिभूषन दत्त, द जैन स्कूल ऑव मैथेमैटिक्स, द बुलेटिन ऑव द कलकता मैथेमैटिकल सोसायटी, जिल्द २१, पृ० ११५ आदि, १२९; सुकुमार रंजनदास, ए शॉर्ट क्रोनोलौजी ऑव इंडियन ऑस्ट्रोनौमी, इंडियन हिस्टोरिकल क्वार्टी, १९३१; एच० आर० कापड़िया, इन्ट्रोडक्शन टू गणिततिलक (गायकवाड़ औरिंटिएल सीरीज, ७८); डी. एम० राय, ऐनेल्स ऑव द भांडारकर इंस्टिटयूट, १९२६-२७, पृ० १४५ आदि ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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